आज इस आर्टिकल में अकबर और बीरबल के मजेदार कहानी कहानी के बारे में जानकारी मिलेगा तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं अकबर और बीरबल के मजेदार कहानी


अकबर और बीरबल के मजेदार कहानी
अकबर बीरबल के मजेदार कहानी

 

घोड़े को घोड़े ही पहचानता है अकबर बीरबल कहानी


अकबर घोड़ों के बहुत शौकीन थे। उनके पास तरह-तरह के और रंग-रंग के घोड़े थे। उनमें से एक घोड़ा उन्हें बहुत प्रिय था। एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा, ‘तुम मेरे प्रिय घोड़े का एक हू-ब-हू चित्र बनवा दो।’

बीरबल ने एक कुशल चित्रकार को बुलवाया। उसे अकबर का घोड़ा दिखा कर बीरबल ने कहा, ‘तुम इस घोड़े का एक हू-ब-हू चित्र तैयार कर दो। मैं तुम्हें मुंह मांगा इनाम दूंगा।’

चित्रकार ने रात-दिन मेहनत की। थोड़े दिनों तक तो वह घोड़े के सामने ही बैठा रहा। फिर घोड़े का हू-ब-हू चित्र तैयार हुआ। बीरबल ने बादशाह को वह चित्र दिखाया। वास्तव में चित्र बहुत ही सुन्दर था, 

फिर भी अकबर ने उसमें तरह-तरह की गलतियां निकालीं। बेचारा चित्रकार इससे बहुत दुखी हो गया। बीरबल समझ गया कि बादशाह चित्रकार को पैसे देना नहीं चाहते, इसीलिए वे चालाकी कर रहे हैं।

बीरबल ने बादशाह से कहा, ‘हुजूर! आप और मैं इस चित्र के बारे में ठीक से समझ नहीं पाएंगे। इसकी जगह आप अपने प्रिय घोड़े को ही यहां मंगवाइए। वही अपने चित्र को अच्छी तरह पहचान सकेगा। घोड़े की परख खुद घोड़ा ही करे।’

अकबर ने अपने प्रिय घोड़े को मंगवाया। घोड़े ने अपना चित्र देखा तो फौरन हिनहिनाने लगा।

अकबर ने पूछा,‘बीरबल, यह घोड़ा क्यों हिनहिनाता है?’ बीरबल ने कहा, ‘हुजूर! घोड़ा कला-पारखी है। इसमें चित्र परखने की अच्छी सूझ-बूझ है। इसीलिए वह अपना हू-ब-हू चित्र देख कर हिनहिना रहा है। इससे सिद्ध होता है कि चित्रकार ने अपना काम बखूबी किया है।’

अकबर बीरबल का इशारा समझ गए। उन्होंने तुरन्त ही चित्रकार को एक हजार मुहरें देने का हुक्म दिया। चित्रकार ने बीरबल का शुक्रिया अदा किया और खुश होकर वहां से रवाना हुआ। 



पण्डित की मातृभाष अकबर बीरबल के कहानी 


एक बार अकबर के दरबार में एक पण्डित आया। उसने कहा, ‘आप लोग मेरी मातृभाषा बताइए या फिर अपनी हार स्वीकार कर लीजिए।’ दरबारियों ने उससे अलग-अलग भाषाओं में प्रश्न किये। 

हर भाषा में उसने सही-सही उत्तर दिए। वह हर भाषा इतनी अच्छी तरह बोलता था, जैसे वह उसकी मातृभाषा ही हो। इसलिए कोई भी दरबारी उसकी मातृभाषा मालूम नहीं कर सका। अन्त में उसने अकबर बादशाह से कहा, ‘मैं अपनी मातृभाषा मालूम करने के लिए आपको सात दिन का समय देता हूं। कहिए, स्वीकार है?’

अकबर ने बीरबल की ओर देखा। बीरबल ने इशारे से हामी भर दी। अकबर ने पण्डित से कहा, ‘हमें तुम्हारी बात स्वीकार है।’

पण्डित एक धर्मशाला में ठहरा हुआ था। रात को जब वह सो गया तो बीरबल वहां पहुंचे। बीरबल ने एक तिनका लेकर पण्डित के कान में घुमाया। पण्डित ने सिर झटका और कान पर हाथ फेरा।

 फिर वह करवट बदल कर गहरी नींद में सो गया। बीरबल ने उसके दूसरे कान में तिनका घुमाया। पण्डित घबरा कर उठ बैठा और झल्लाते हुए बोला, ‘अरे! कोण छे, मने ऊंघमां हेरान करे छे?’(कौन है रे? मुझे नींद में परेशान करता है।)

पण्डित के कान में तिनका घुमा कर बीरबल छिप गए थे, इसलिए पण्डित उन्हें देख नहीं सका। वह फिर नींद में सो गया। बीरबल वहां से सीधे अपने घर चले आए।

सातवें दिन पण्डित अकबर के दरबार में हाजिर हुआ। बीरबल ने अलग-अलग भाषाओं में उससे बात की। फिर उसने अकबर से कहा, ‘बादशाह सलामत! पण्डित जी की मातृभाषा गुजराती है।’

सुन कर पण्डित आश्चर्य में पड़ गया। आज पहली बार कोई उसकी मातृभाषा का सही पता लगा पाया था। उसने अपनी हार स्वीकार कर ली और दरबार से चलता बना। अकबर ने पूछा, ‘बीरबल! इतना कठिन कार्य तुमने कैसे किया?’

बीरबल ने कहा,‘जहांपनाह! जब मनुष्य पर दुख पड़ता है या फिर वह अचानक नींद से जागता है, तब वह अपनी मातृभाषा में ही बोलता है।’ इतना कह कर बीरबल ने रात की सारी घटना सब को कह सुनाई। सभी ने बीरबल की प्रशंसा की। अकबर ने बीरबल को सहर्ष अपने गले का हार भेंट में दे कर उनका सम्मान किया।


सही और गलत के बीच का अंतर अकबर बीरबल के कहानी


एक दिन अकबर बादशाह ने सोचा, ‘हम रोज-रोज न्याय करते हैं। इसके लिए हमें सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लेकिन सही और गलत के बीच आखिर कितना अंतर होता है?’ दूसरे दिन अकबर बादशाह ने यह प्रश्न दरबारियों से पूछा।

 दरबारी इस प्रश्न का क्या जवाब देते? दरबारियों के लिए तो बीरबल ही सभी दुखों की एकमात्र दवा थे, इसलिए सभी दरबारियों की नजरें बीरबल पर टिक गईं।

बादशाह समझ गए कि किसी के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं है। यदि किसी के पास जवाब है भी तो उसमें जवाब देने की हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्होंने बीरबल से कहा, ‘बीरबल, तुम्हीं बताओ, सही और गलत में कितना अन्तर है?’

बीरबल ने तुरन्त जवाब दिया, ‘बादशाह सलामत! सही और गलत के बीच में सिर्फ चार अंगुल का अंतर है।’

अकबर चौंके। वह तो समझते थे कि इस प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं हो सकता, इसलिए बीरबल का जवाब सुन कर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, ‘बीरबल! अब तुम समझाओ कि तुमने सही और गलत के बीच का यह अन्तर किस प्रकार खोज निकाला।’

बीरबल ने कहा, ‘जहांपनाह! सीधी सी बात है। आंख और कान के बीच चार अंगुल का अन्तर है या नहीं।’

अकबर ने कहा, ‘हां, है, लेकिन मेरे प्रश्न से इसका क्या संबंध है?’

बीरबल ने कहा, ‘आपके प्रश्न से इसका संबंध है, जहांपनाह! आप जिसे अपनी आंखों से देखते हैं, वही सही है। जिसे आप अपने कानों से सुनते हैं, वह गलत भी हो सकता है। कानों से सुनी हुई बात हमेशा सच नहीं होती, इसलिए सही और गलत के बीच चार अंगुल का ही अन्तर माना जाएगा।’

यह सुन कर बादशाह चकित होकर बोले, ‘वाह! बीरबल वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई बेजोड़ है।’


निष्कर्ष 


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