आज इस पोस्ट में जानेंगे कि अकबर और बीरबल के मजेदार चुटकुले के बारे में, जो आपको बहुत पसंद आयेगा। आपलोग कभी कभी सुनते होंगे की अकबर और बीरबल इतिहास मे काफी प्रसिद्ध हुआ है लोग इनके कहानी बहुत दिलचस्प से सुनते है और पढ़ते भी है। यदि आप भी इस तरह का कहानी पढ़ना चाहते है तो आप नीचे लिखे कथनों को ध्यान पूर्वक पढ़ कर आसानी से ज्ञान अर्जित कर सकते हैं तो चालिए बीना देर किए शुरू करते हैं अकबर और बीरबल का कहानी


 दाढ़ी पकड़ने की सजा अकबर बीरबल की कहानी

अकबर और बीरबल के मजेदार कहानी
अकबर और बीरबल के मजेदार कहानी


बादशाह अकवर एक दिन दरबार में पधारे और सिंहासन पर विराजमान होते ही उन्होंने दरबारियों से कहा, ‘‘आज एक शख्स ने मेरी दाढ़ी खींची है। कहिए, मैं उसे क्या सजा दूं।

यह सुनकर सभी दरबारी हैरान हुए और सोचने लगे कि किसने ऐसी गुस्ताखी की ? आखिर किसकी मौत आई है जो ऐसी जुर्रत कर बैठा। वे परस्पर कानाफूसी करने लगे।

थोड़ी देर के बाद एक दरबारी बोला, ‘‘जहांपनाह ! जिसने ऐसा दुस्साहस किया है, उसका सिर धड़ से उड़ा दिया जाए।

दूसरे दरबारी ने कहा, ‘‘मेरी राय है जहांपनाह कि ऐसी गुस्ताखी करने वाले को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया जाए।’’ किसी ने कहा उस पर कोड़े बरसाएं जाएं, किसी ने कहा कि उसे जिन्दा दीवार में चिनवा दिया जाए।

जितने दरबारी, उतनी तरह की बातें।

तरह-तरह की सजाएं सुझाई गईं।

उनकी बातें सुन कर बादशाह ऊब गए। अन्त में उन्होंने बीरबल से कहा, ‘‘बीरबल, तुम क्या कहते हो ? हमारी दाढ़ी खींचने वाले को हमें क्या सजा देनी चाहिए ?

बीरबल मंद-मंद मुस्कराए और बोले-‘‘जहांपनाह ! आप उसे प्यार से मिठाई खिलाइए। इस अपराध की यही सजा है।’’ बीरबल का उत्तर सुनकर सारे दरबारी चौंके और उस अंदाज में बीरबल का चेहरा देखने लगे, मानो वे पगला गए हों।

जबकि बीरबल के उत्तर से खुश होकर बादशाह ने कहा, ‘‘वाह-वाह ! बीरबल, तुम्हारी बात बिल्कुल सही है।

लेकिन यह तो बताओ कि मेरी दाढ़ी किसने खींची होगी ?’’ बीरबल ने कहा, ‘‘जहांपनाह ! छोटे शाहजादे के अलावा ऐसी हिम्मत कौन कर सकता है ? उसने तो प्यार से ही ऐसा किया होगा ! इसलिए उसे सजा में मिठाई खिलानी चाहिए।

बीरबल की बात सही थी। आज सुबह शाहजादा बादशाह की गोद में बैठा था. खेलते-खेलते उसने बादशाह की दाढ़ी खींची थी। चतुर बीरबल के जवाब से बादशाह खुश हुए।

अन्य सभी दरबारियों, जो इतना भी नहीं सोच पाए कि बाहर का कोई शख्स भला बादशाह की दाढ़ी कैसे खींच सकता है, के सिर शर्म से झुक गए।


बादशाह का गुस्सा अकबर बीरबल की कहानी


बादशाह अकबर अपनी बेगम से किसी बात पर नाराज हो गए। नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्हें बेगम को मायके जाने को कह दिया। बेगम ने सोचा कि शायद बादशाह ने गुस्से में ऐसा कहा है, इसलिए वह मायके नहीं गईं।

 जब बादशाह ने देखा कि बेगम अभी तक मायके नहीं गई हैं तो उन्होंने गुस्से में कहा—‘‘तुम अभी तक यहीं हो, गई नहीं, सुबह होते ही अपने मायके चली जाना वरना अच्छा न होगा। तुम चाहो तो अपनी मनपसंद चीज साथ ले जा सकती हो।’’

बेगम सिसक कर जनानखाने में चली गईं। वहां जाकर उसने बीरबल को बुलाया। बीरबल बेगम के सामने पेश हो गया। बेगम ने बादशाह की नाराजगी के बारे में बताया और उनके हुक्म को भी बता दिया ।

‘‘बेगम साहिबा अगर बादशाह ने हुक्म दिया है तो जाना ही पड़ेगा, और अपनी मनपसंद चीज ले जाने की बाबत जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करें, बादशाह की नाराजगी भी दूर हो जाएगी।’’

बेगम ने बीरबल से कहे अनुसार बादशाह को रात में नींद की दवा दे दी और उन्हें नींद में ही पालकी में डालकर अपने साथ मायके ले आई और एक सुसज्जित शयनकक्ष में सुला दिया। जब बादशाह की नींद खुली तो स्वयं को अनजाने स्थान पर पाकर हैरान हो गए, पुकारा—‘‘कोई है ?

उनकी बेगम साहिबा उपस्थित हुईं। बेगम को वहां देखकर वे समझ गए कि वे अपनी ससुराल में हैं। उन्होंने गुस्से से पूछा—तुम हमें भी यहां ले आई, इतनी बड़ी गुस्ताखी कर डाली ।

मेरे सरताज, आपने ही तो कहा था कि अपनी मन पसंद चीज ले जाना, इसलिए आपको ले आई। 

यह सुनकर बादशाह का गुस्सा जाता रहा, मुस्कराकर बोले—जरूर तुम्हें यह तरकीब बीरबल ने ही बताई होगी।

बेगम ने हामी भरते हुए सिर हिला दिया।


बादशाह की पहेलीय अकबर बीरबल की कहानी


बादशाह अकबर को पहेली सुनाने और सुनने का काफी शौक था। कहने का मतलब यह कि पक्के पहेलीबाज थे। वे दूसरो से पहेली सुनते और समय-समय पर अपनी पहेली भी लोगो को सुनाया करते थे। 

एक दिन अकबर ने बीरबल को एक नई पहेली सुनायी, “ऊपर ढक्कन नीचे ढक्कन, मध्य-मध्य खरबूजा। मौं छुरी से काटे आपहिं, अर्थ तासु नाहिं दूजा।

बीरबल ने ऐसी पहेली कभी नहीं सुनी थी। इसलिए वह चकरा गया। उस पहेली का अर्थ उसकी समझ में नहीं आ रहा था। अत प्रार्थना करते हुए बादशाह से बोला, “जहांपनाह! अगर मुझे कुछ दिनों की मोहलत दी जाये तो मैं इसका अर्थ अच्छी तरह समझकर आपको बता सकूँगा।” बादशाह ने उसका प्रस्ताव मंजूर कर लिया।

बीरबल अर्थ समझने के लिए वहां से चल पड़ा। वह एक गाँव में पहुँचा। एक तो गर्मी के दिन, दूसरे रास्ते की थकन से परेशान व विवश होकर वह एक घर में घुस गया। घर के भीतर एक लड़की भोजन बना रही थी।

बेटी! क्या कर रही हो?” उसने पूछा। लडकी ने उत्तर दिया, “आप देख नहीं रहे हैं। मैं बेटी को पकाती और माँ को जलाती हूँ।”

अच्छा, दो का हाल तो तुमने बता दिया, तीसरा तेरा बापू क्या कर रहा है और कहाँ है?” बीरबल ने पूछा।

वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहे हैं।” लडकी ने जवाब दिया। इस जवाब को सुनकर बीरबल ने फिर पूछा, “तेरी माँ क्या कर रही है?” एक को दो कर रही है।” लडकी ने कहा।

बीरबल को लडकी से ऐसी आशा नहीं थी। परन्तु वह ऐसी पण्डित निकली कि उसके उत्तर से वह एकदम आश्चर्यचकित रह गया। इसी बीच उसके माता-पिता भी आ पहुँचे। बीरबल ने उनसे सारा समाचार कह सुनाया। लडकी का पिता बोला, मेरी लड़की ने आपको ठीक उत्तर दिया है। 

अरहर की दाल अरहर की सूखी लकड़ी से पक रही है। मैं अपनी बिरादरी का एक मुर्दा जलाने गया था और मेरी पत्नी पडोस में मसूर की दाल दल रही थी।” बीरबल लडकी की पहेली-भरी बातों से बड़ा खुश हुआ।

 उसने सोचा, शायद यहां बादशाह की पहेली का भेद खुल जाये, इसलिए लडकी के पिता से उपरोक्त पहेली का अर्थ पूछा।

यह तो बड़ी ही सरल पहेली है। इसका अर्थ मैं आपको बतलाता हूँ – धरती और आकाश दो ढक्कन हैं। उनके अन्दर निवास करने वाला मनुष्य खरबूजा है। वह उसी प्रकार मृत्यु आने पर मर जाता है, जैसे गर्मी से मोम पिघल जाती है।” उस किसान ने कहा। 

बीरबल उसकी ऐसी बुध्दिमानी देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे पुरस्कार देकर दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर बीरबल ने सभी के सामने बादशाह की पहेली का अर्थ बताया। बादशाह ने प्रसन्न होकर बीरबल को ढेर सारे इनाम दिये।


बीरबल और तानसेन का विवाद अकबर बीरबल की कहानी


तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे। हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए।

 बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे। वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की सलाह दी।

‘‘हुजूर, जब आपने किसी और से फैसला कराने को कहा है तो यह भी बता दें कि हम किस गणमान्य व्यक्ति से अपना फैसला करवाएं ?’’ बीरबल ने पूछा।

‘‘तुम लोग महाराणा प्रताप से मिलो, मुझे यकीन है कि वे इस मामले में तुम्हारी मदद जरूर करेंगे।’’ बादशाह अकबर ने जवाब दिया।

अकबर की सलाह पर तानसेन और बीरबल महाराणा प्रताप से मिले और अपना-अपना पक्ष रखा। दोनों की बातें सुनकर महाराणा प्रताप कुछ सोचने लगे, तभी तानसेन ने मधुर रागिनी सुनानी शुरू कर दी। महाराणा मदहोश होने लगे। 

जब बीरबल ने देखा कि तानसेन अपनी रागिनी से महाराणा को अपने पक्ष में कर रहा है तो उससे रहा न गया, तुरन्त बोला—‘‘महाराणाजी, अब मैं आपको एक सच्ची बात बताने जा रहा हूं, जब हम दोनों आपके पास आ रहे थे तो मैंने पुष्कर जी में जाकर प्रार्थना की थी,

 कि मेरा पक्ष सही होगा तो सौ गाय दान करूंगा; और मियां तानसेन जी ने प्रार्थना कर यह मन्नत मांगी कि यदि वह सही होंगे तो सौ गायों की कुर्बानी देंगे। महाराणा जी अब सौ गायों की जिंदगी आपके हाथों में है।’’

बीरबल की यह बात सुनकर महाराणा चौंक गए। भला एक हिंदू शासक होकर गो हत्या के बारे में सोच कैसे सकते थे। उन्होंने तुरन्त बीरबल के पक्ष को सही बताया।

जब बादशाह अकबर को यह बात पता चली तो वह बहुत हंसे।


निष्कर्ष 


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