जगमगा रहा दिया मजार पर !
एक ही दिया , स्नेह से भरा ,
प्रेम का प्रकाश , प्रेम से धरा;
झिलमिला हवा को तिलमिला रहा
ज्योति का निशान जो हिला रहा
मुस्कुरा रहा है अंधकार पर ।
यह मजार है किसी शाहिद का ,
दर्शनीय था जो चांद ईद का ,
देश का सपूत था , गुमान था
सत्य का स्वरूप नौजवान था
जो चला किया सदा सुधार पर ।
देश का दलन दुसह दुराज वह
वे कुरीतिया , दलित समाज वह
वे गुलामिया जो पिसती रही
वह दमन का चक्र अश्रुधार पर
देख आंख में लहू उतर गया
पंख चैन के कोई कुतर गया
धधक उठी आग अंग अंग मे
खौल उठा विष उमंग उमंग में
चल पड़ा अमर , अमर पुकार पर !
वह जिधर चला, जवानिया चली,
बाढ़ की विकल खानिया चली,
नाश की नई निशानियां चली,
इंकलाब की कहानियां चली,
फूल के चरण चले अंगार पर !
दम्भ का जहां जहां पड़ाव था
सत्य से जहां-जहां दुराव था
वह चला कि अग्निबाण मारता
पाप कि अहा अहा उजाड़ता ,
वज्र बन गिरा, गिरे विचार पर!
आज देश के उसी सपूत की,
राष्ट्र के शहीद अग्रदूत की ,
राष्ट्र के शहीद अग्रदूत की ,
शांति की मशाल जो लिए चला
क्रांति के मसालों किए चला
लौ जुगा रहा दिया मजार पर!
राम गोपाल शर्मा
Post a Comment