कर्मवीर

 कर्म के प्रति निष्ठा ही व्यक्ति की सफलता का निर्धारण करती है । बधाऐ व्यक्तित्व को निखारने का काम करती है । कविता बढ़ाओ से जूझते हुए उन कर्मशील लोगो की बात करती है , जो सभ्यता संस्कृति का निर्माण करते है ।



देखकर बाधा बिबिध , बहु बिघन घबराते नही ।

रह  भरोसे  भाग के दुख भोग  पछताते   नही ।।

काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं ।

भीड़ में चंचल  बने जो।  वीर दिखलाते   नही ।।

हो गए  एक  आन मे  उनके  बुरे दिन भी भले ।

सब जगह सब  काल मे  वे ही मिले फूले फले ।।



आज करना है जिसे करते उसे  है  आज ही ।

सोचते कहते है जो कुछ , कर दिखाते है वही ।।

मानते जी की है , सुनते है सदा सबकी कही ।

जो मदद करते है अपनी इस जगत में आप ही ।।

भूलकर   वे    दूसरों का  मुंह कभी ताकते नहीं ।

कौन  ऐसा  काम  है  वे  कर जिसे  सकते  नही ।।



जो  कभी  अपने समय  को यों  बीताते  है  नहीं ।

काम करने   की  जगह बातें      बनाते  है नही ।।

आज  कल करते  हुए जो  दिन गंवाते  है।  नही ।

यत्न  करने  मे  कभी  जो  जी  चुराते   है   नही।। 

बात  है  वह  कौन जो  होती  नही  उनके किए ।

वे  नमूना  आप  बन  जाते  हैं  औरों  के लिए ।।



चीलचिलाती  धूप  को  जो  चांदनी  देवे   बना ।

काम  पढ़ने  पर  करें  जो  शेर का  भी  सामना ।।

जो की हस  हस के  चबा लेते  है लोहे का चना ।

है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी मे यह ठना।।

कोस  कितने  भी  चले पर वे  कभी  थकते नहीं । 

कौन सी है  गांठ  जिनको  खोल  वे  सकते  नही।।



काम  को  आरंभ  करके  यो  नहीं  जो  छोड़ते ।

सामना  करके  नही जो  भूलकर  मुंह  मोड़ते ।।

जो गगन के  फूल  बातें  से  बृथा  नहीं  तोड़ते ।

संपदा  मन  से  करोड़ों  की नही   जो  जोड़ते ।।

बन गया हीरा उन्ही  के  हाथ  से  है  कारबन ।

कांच को करके दिखा देते हैं वे उज्जवल रतन ।।




पर्वतों को  काटकर  सड़क  बना सकते  देते हैं वे ।

सैकड़ों   मरुभूमि  में  नदिया  बहा  देते  है  वे ।।

गर्भ  में  जल  राशि  के  बेड़ा  चला  देते  है  वे ।

जंगलों    में  भी  महामंगल  रचा   देते  है  वे ।।

भेद नभ तल का  उन्होंने है बहुत   बतला दिया ।

है उन्होंने  ही  निकली  तार  की  सारी  क्रिया ।।





कार्य स्थल को वे कभी नहीं  पूछते  वह है कहा ।

कर दिखाते  है  असंभव को  भी संभव वे वहां ।।

उलझने आकर उन्हें पढ़ती है जितनी ही जहां ।

वे  दिखाते  हैं  नया  उत्साह  उतना  ही  वहां ।।

डाल  देते   हैं    विरोधी  सैकड़ों  ही    अड़चने ।

वे जगह से  काम अपना  ठीक  करके  ही  टले ।।




सब तरह से आज जितने देश है फूले फले ।

वृद्धि, विधा , धन , बिभब के है जहां डेरे डले ।।

वे   बनाने  से  उन्ही   के  बन  गए  इतने भले ।

वे  सभी  है  हाथ  से   ऐसे  सपूतों  के   पले ।।

लोग जब ऐसे  समय पाकर  जनम  लेंगे  कभी ।

देश की  ओ  जाति  की  होगी भलाई भी  तभी। ।



                          "अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध"





Post a Comment