झांसी की रानी

 18 सो 57 की क्रांति भारतीय स्वाधीनता संग्राम का अविस्मरणीय अध्याय है ब्रितानी हुकूमत से विद्रोह का विस्तार समाज के हर तबके तक हुआ सुभद्रा कुमारी चौहान की या कविता झांसी की रानी के जीवन वृत्त संघर्ष और विद्रोह से हमारा खोजपूर्ण साक्षात्कार कराती है आम भारतीयों की जुबान पर बस यही कविता प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाती है। 




सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी ,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी ,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी , 





चमक उठी सन 1857 में 

वह तलवार पुरानी थी 

बुंदेले हरबोलों के मुंह 

हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी।





कानपुर के नाना की मुंहबोली बहन छबीली थी 

लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी 

नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी 

बरछी धार कृपान कटारी उसकी यही सहेली थी।





वीर शिवाजी की गाथाएं 

उसको याद जवानी थी

 बुंदेले हरबोलों के मुंह 

हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी 




लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार

 देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों की बार 

नकली युद्ध चक्रव्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार 

सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़,





महाराष्ट्र कुलदेवी उसकी

 भी आराध्य भवानी थी 

बुंदेले हरबोलों के मुंह 

हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

 झांसी वाली रानी थी।




हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में,

 ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में ,

राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाई झांसी में ,

सुभट बुंडेलो की विरुदावली सी वह आई झांसी में।




चित्रा ने अर्जुन को पाया ,

शिव से मिली भवानी थी

 बुंदेले हरबोलों के मुंह 

हमने सुनी कहानी थी

 खूब लड़ी मर्दानी वह तो

 झांसी वाली रानी थी।




उचित हुआ सौभाग्य, मोदीत तो महिलाओं में उजाली छाई ,

किंतु काल कीट चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई ,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,

 रानी विधवा हुई हाय विधि को भी नहीं दया आई।





नि :संतान मोरे राजा जी ,

 रानी शोक समानी थी ,

बुंदेले हरबोलों के मुंह

 हमने सुनी कहानी थी,

 खूब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी।




बुझा दीप झांसी का जब डलहौजी मन में हर साया,

 राज हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

 फौरन फौज भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया,




 अश्रुपूर्ण रानी ने देखा

 झांसी हुई बिरानी थी

 बुंदेले हरबोलों के मुंह 

हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी।





छिनी राजधानी दिल्ली की,लिया  लखनऊ  बातों बात,

कैद पेशवा था बिठूर में हुआ नागपुर पर भी घात

उदयपुर तंजौर सतारा कर्नाटक की कौन विरासत जबकि

 सिंध पंजाब ब्रह्म पर अभी भी हुआ था वज्रर निपात।





बंगाले मद्रास आदि की 

भी तो वह कहानी थी

 बुंदेले हरबोलों के मुंह

 हमने सुनी कहानी थी

 खूब लड़ी मर्दानी वह तो

 झांसी वाली रानी थी 





उनकी गाथा छोड़ चले हम झांसी के मैदान मे, 

जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मरदानों में,

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुंचे आगे बड़ा जवानों में

 रानी ने तलवार खींच ली हुई द्वंद आसमानों में,




ज़ख्मी होकर वाकर भागा ,

उसे अजब हैरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह

हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो 

झांसी वाली रानी थी।





  रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

 घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार, 

 यमुनातट  पर   अंग्रेज़ों  ने  फिर  खाई  रानी  से  हार,

विजई रानी आगे चल दी किया ग्वालियर पर अधिकार।




अंग्रेज के मित्र सिंधिया ,

ने छोड़ी राजधानी थी,

 बुंदेलों हरबोलों के मुंह ,

हमने सुनी कहानी थी ,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,

झांसी वाली रानी थी।




विजय मिली पर  अंग्रेज़ों  की फिर सेना घिर  आई थी,

अबकी जनरल स्मिथ सम्मुख था उसने मुंह की खाई थी

 काना  और  मुंदरा  सखियां रानी के   संग  आई  थी , 

युद्ध  क्षेत्र  में  उन  दोनों ने  भारी  मार  मचाई थी।




पर पीछे हीरोज आ गया,

हाय ! घिरी अब रानी थी,

 बुंदेले हरबोलों  के  मुंह,

हमने  सुनी  कहानी  थी,

 खूब लड़ी मर्दानी वो तो ,

झांसी  वाली  रानी  थी।




तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किंतु सामने नाला आ गया यह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था इतने में आ गए सवार,

रानी  एक  शत्रु  बहुतेरे  होने  लगे  बार-पर  बार ,





पायल होकर गिरी सिंहनी ,

उसे वीर गति पानी थी ,

बुंदेले हरबोलों के मुंह ,

हमने सुनी कहानी थी ,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,

झांसी  वाली  रानी  थी।




रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

 मिला तेज से तेज तेज की वह सच्ची अधिकारी थी, 

अभी उम्र कुल 23 की थी मनुज नहीं अवतारी थी,

 हमको जीवित करने आई बन कर स्वतंत्रता नारी थी। 





सिखा गई पथ, सिखा गई ,

हमको जो शीख कहानी थी ।

बुंदेले    हरबोलों    के   मुंह ,

हमने   सुनी  कहानी   थी

खूब  लड़ी  मर्दानी  वह  तो 

झांसी   वाली   रानी   थी।।