चाह नहीं मैं सुरबाला के ,
गहनों में गूंथा जाऊं ;
चाह नहीं प्रेमी माला में,
बिंद प्यारी को ललचाऊ;
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर ,
हे हरि। डाला। जा ;
चाह नहीं देवों के सिर पर ,
चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं;
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक ;
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ पर जावे वीर अनेक!
माखन लाल चतुर्वेदी
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