जाड़े की रात
पहाड़ पर रो रहा है एक हिरण
खेल मे मदमस्त
भटक गया है वह राह
वह नन्हा हिरण
उसके लिए बहुत दुखी हूं मैं
उसकी दो खुली आंखों मे
बेदना है कितनी !
हिरण के छौने रै , हिरण के छौने
रो मत , सो जा आराम से
जरूर मिलेगी तेरी मां तुझे !
सो जा ,सो जा ...
बांस के बन , पाईन आंक के बन
रात की हवा
तुझे लोरी सुना रहे है !
डर मत, बेहिचक सो जा
आकाश मे है तारे भरे
नीचे झरे
ढेर के ढेर पत्ते
कितने नरम हैं
हिरण के छैने , सो जा !
सो जा सुबह तक
सूरज उगेगा
उसकी सुनहरी किरने
छुएगी जंगल के पत्तो को
मिल जायेगी तुझे तेरी मां
रो मत , मत रो ,। नन्हे हिरण
" राजेंद्र कुमार मिश्र"
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