पांडवो को तुम रखो , मैं कौरवों की भीड़ से !
तिलक शिकस्त के बीच मे जो टूटे ना वो रीढ़ मै !!
सूरज के अंश हो के ,फिर भी हूं अछूत मैं !
आर्यावर्त को जीत ले ऐसा हूं सूत पुत मै !!
कुंती पुत्र हूं मगर न हूं उसी को प्रिय मैं !
इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हुं क्षत्रिय मैं !!
आओ मैं बताऊं महाभारत के सारे पात्र ये !
भोले सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे !!
बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे !
काबिल दिखाया बस लोगो को ऊंची गोत्र के !!
सोने को पिघला कर डाला शोन तेरे कंठ में !
नीची जाति हो के किया वेद का पठंतु ने !!
यही था गुनाह तेरा तू सारथी का अंश था !
तो क्यों छिपे मेरे पीछे मै भी उसी का बंश था !!
ऊंच नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था !
वीरों की सूची में अर्जुन के सिवा कौन था !!
माना था माधव को वीर तो क्यों डरा एकलव्य से !
मांग के अंगूठा क्यों जताया पार्थ भव्य है !!
रथ पर सजाया जिसने कृष्ण हनुमान को !
योद्धाओ के युद्ध मे लड़ाया भगवान को !!
नंदलाल तेरी ढाल पीछे अंजनेय थे !
नियति कठोर थी जो दोनो बंदनीय थे !!
ऊंचे ऊंचे लोगो मे मै ठहरा छोटी जात का !
खुद से ही अनजान मै ना घर का ना घाट का !!
सोने सा था तन मेरा अभेद मेरा अंग था !
कर्ण का कुंडल चमके लाल नीले रंग का !!
इतिहास साक्ष्य हैं योद्धा मै निपुण था !
बस एक मजबूरी थी मैं बचनो का शौकीन था !!
अगर ना दिया होता वचन वो मैंने कुंती माता को !
पांडवो के खून से मै धोता अपने हाथ को !!
साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का !
गंगा मां का लाडला मै खामखा बदनाम था !!
कौरवों से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा !
जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा !!
भास्कर पिता मेरे हर किरण मेरा स्वर्ण है !
वन में अशोक मै तू तो खाली पर्ण है !!
कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में मेरा भी लहू जिर्ण है !
देख छान के उस मिट्टी को कण कण मे कर्ण है !!
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