Mahabharat महाभारत वीर कर्ण की कविता

 पांडवो को तुम रखो , मैं कौरवों की भीड़ से !

तिलक शिकस्त के बीच मे जो टूटे ना वो रीढ़ मै !!


 सूरज के अंश हो के ,फिर भी हूं अछूत मैं ! 

आर्यावर्त को  जीत  ले  ऐसा  हूं सूत पुत मै !!


कुंती पुत्र हूं मगर न हूं उसी को  प्रिय मैं !

इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हुं क्षत्रिय मैं !!


आओ मैं बताऊं महाभारत  के सारे पात्र ये !

भोले सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे !!


बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे !

काबिल दिखाया बस लोगो को ऊंची गोत्र के !!


सोने को पिघला कर डाला शोन तेरे कंठ में !

नीची जाति हो के किया वेद का पठंतु ने !!


यही था गुनाह तेरा तू  सारथी का अंश था !

तो क्यों छिपे मेरे पीछे मै भी उसी का बंश था !!


ऊंच नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था !

वीरों की सूची में अर्जुन के सिवा कौन था !!


माना था माधव को वीर तो क्यों डरा एकलव्य से !

मांग  के  अंगूठा  क्यों  जताया  पार्थ  भव्य  है !!


रथ पर सजाया जिसने कृष्ण हनुमान को !

योद्धाओ के युद्ध मे लड़ाया भगवान को !!


नंदलाल  तेरी  ढाल  पीछे  अंजनेय  थे !

नियति कठोर थी जो दोनो बंदनीय थे !!


ऊंचे ऊंचे लोगो मे मै ठहरा छोटी जात का !

खुद से ही अनजान मै ना घर का ना घाट का !!


सोने सा  था   तन मेरा अभेद मेरा अंग था !

कर्ण का कुंडल चमके लाल नीले रंग का !!


इतिहास साक्ष्य हैं योद्धा मै निपुण था !

बस एक मजबूरी थी मैं बचनो का शौकीन था !!


अगर ना दिया होता वचन वो मैंने कुंती माता को !

पांडवो के  खून  से  मै  धोता  अपने  हाथ  को !!


साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का !

गंगा मां का लाडला मै खामखा बदनाम था !!


कौरवों से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा !

जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा !!


भास्कर पिता मेरे हर किरण मेरा स्वर्ण है !

वन में अशोक मै तू तो खाली पर्ण है !!



कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में मेरा भी लहू जिर्ण है !

देख छान के उस मिट्टी को कण कण मे कर्ण है !!








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