Meethi boli मीठी बोली पर आधारित कविता



 बस मे जिससे हो जाते है प्राणी सारे 

             जन जिससे बन जाते है आंखों के तारे ।

पत्थर को पिघलकर मोम बनाने वाली 

                मुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे ।।



रगड़े -झगड़ो का करवापन खोने वाली 

                   जी मे लगी हुई काई को धोने वाली ।

सदा जोड़ देने वाली जो टूटा नाता 

                   मीठी बोली बीज प्यार है बोने वाली ।।



कांटों में भी सुंदर फूल खिलने वाली 

                  रखने वाली कितने ही मुखड़ों की लाली ।

निपट बना देने वाली है बिगड़ी बातें 

                  होती मीठी बोली की करतूत निराली ।।



जी उमगाने वाली चाह बढ़ान वाली 

                        दिल के पेचिदे ताले सच्ची ताली ।

फैलने वाली सुगंध सब ओर अनूठी 

                  मीठी बोली है विकसित फूलो की डाली ।। 



                           अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध

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