बस मे जिससे हो जाते है प्राणी सारे
जन जिससे बन जाते है आंखों के तारे ।
पत्थर को पिघलकर मोम बनाने वाली
मुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे ।।
रगड़े -झगड़ो का करवापन खोने वाली
जी मे लगी हुई काई को धोने वाली ।
सदा जोड़ देने वाली जो टूटा नाता
मीठी बोली बीज प्यार है बोने वाली ।।
कांटों में भी सुंदर फूल खिलने वाली
रखने वाली कितने ही मुखड़ों की लाली ।
निपट बना देने वाली है बिगड़ी बातें
होती मीठी बोली की करतूत निराली ।।
जी उमगाने वाली चाह बढ़ान वाली
दिल के पेचिदे ताले सच्ची ताली ।
फैलने वाली सुगंध सब ओर अनूठी
मीठी बोली है विकसित फूलो की डाली ।।
अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध
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