आज आप लोग इस पोस्ट के माध्यम से डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन का किस तरह सफल रहा जो पूरे भारतीयों के लिए एक गर्व की बात है ऐसे व्यक्तियों का भारत में जन्म लेना हमें अनुग्रहित करता है, इसके बारे में पूरी जीवन का दिनचर्या के बारे में पूरी तरह जानकारी मिलेगी तो चलिए शुरू करते हैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन का पूरी गाथा के बारे में ,

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन  का जीवन परिचय

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिचय

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन साधारण ब्राह्मण के घर में जन्मे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी योग्यता और परिश्रम के बल पर देश और विदेश में बहुत नाम कमाया शिक्षा तथा राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में शिखर तक पहुंचे अपने दार्शनिक विचारों से उन्होंने विश्व भर के दार्शनिकों को चौंकाया और भारतीय दर्शन की समुचित व्याख्या कर उसे पाश्चात्य दर्शन के बीच ना केवल पहचान दी बल्कि या भी साबित किया कि भारतीय दर्शन की तुलना में पश्चिमी दर्शन का अस्तित्व दूसरे दर्जे का है भारतीय दर्शन समूची मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है क्योंकि उसका उद्देश्य भी सकारात्मक है तथा साधन ल सकारात्मक है भारतीय दर्शन समूची मनुष्य जाति को रचनात्मक दिशा प्रदान करता है ।

उनके समूचे जीवन काल को तीन चरणों में बांटकर देखा जा सकता है- 
बचपन वा विद्यार्थी जीवन 
शिक्षा कला 
राजनैतिक जीवन 

विद्यार्थी जीवन में सरल स्वभाव के परिसर में नवयुवक के रूप में नजर आते थे एक ऐसा नवयुवक जो देखने में भी सुंदर है और वर्तनी में भी है अपने व्यवहार विचार तथा परिश्रम के कारण जो हर साथी और अध्यापक का ध्यान अपनी ओर खींचता है छात्रवृत्ति प्राप्त करता है पुरस्कार प्राप्त करता है अधिक उपलब्धियों के कारण मित्रों की इस या का पात्र बनता है तथा शिक्षकों की प्रशंसा का पात्र बनता है। 

शिक्षा कला में वह कक्षा में पढ़ाने से लेकर शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन तक के कार्यों को सफलतापूर्वक करता है और छात्रों के आकर्षक का केंद्र भी बन जाता है सबसे कम उम्र का प्रोफेसर बन कर वह अपने व्यवहार विचार और शिक्षण शैली से छात्रों को लुभाता है उन्हें इस बात से बड़ी परेशानी होती है कि उन से कम आयु का शिक्षक होकर भी राधाकृष्णन से अधिक नाम कमाता है और पद में भी उससे आगे निकल जाता है।

राजनीतिक मैं आने पर भी वह अध्ययन और लेखन को ध्यान नहीं देता है फिर भी पता नहीं कैसे मिलने वालों पर सबसे अधिक अपनी छाप छोड़ जाता है सबसे अधिक समस्याओं के समाधान देता है तथा सबसे ज्यादा सम्मान और सत्कार पाता हुआ सर्वोच्च पद तक पहुंच जाता है।

जवाहरलाल नेहरू जैसे महान नेता उनसे सलाह लेने पर गर्व का महसूस अनुभव करता है तथा विश्व के बड़े से बड़े दार्शनिक जिससे मिलने पर उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते हैं।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 

डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को चेन्नई से 200 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है तिरुताणी नामक एक छोटे से गांव में हुआ था वर्तमान में नाााा के तिरुवरू जिला मेंं पड़ता हैैे उसके पिता का नाम सर्वपल्ली वी रामास्वामी था उसके माता का नाम सीतम्मा था । उसके पिता एक गरीब ब्राह्मण थे तथा जमींदार के अधीन काम करने वाले एक कर्मचारी था डॉक्टर राधाकृष्णन के पूर्वज 18 वीं शताब्दी में अपने गांव सर्वपल्ली को छोड़कर उत्तरी  आरकोर्ट जिले के तिरुताणी नाम गांव में आकर बस गए थे। उनके पांच भाई तथा एक बहन था इस प्रकार पूरे परिवार का भरण पोषण एक साधारण कर्मचारी के लिए बहुत मुश्किल था। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का छात्र जीवन

राधाकृष्णन एक बहुत तेज छात्र थे वह कोई भी चीज बड़ी आसानी से याद कर लेता था उन्होने अपनी पढ़ाई की शुरुआत हरमंसबर्ग इवेंजिकल लूथर मिशन स्कूल से शुरुआत किया था इस स्कूल में उन्होंने 4 वर्ष तक पढ़ाई की थी  8 उसकी आयु से लेकर 12 

वर्ष की आयु तक उन्होंने इसी स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी की, राधाकृष्णन बाइबल के पाठ को हू बहू रट लिया था 

वहां के शिक्षक इनसे बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने इनको छात्रवृत्ति देना शुरू कर दी तिरुपति गांव के स्कूल में 4 साल तक पढ़ाई करने के बाद राधाकृष्णन 1900 ई में वेल्लौर चले गए वेल्लोर मैं राधाकृष्णन के रिश्तेदारी नौकरी करते थे वहां के स्थानीय स्कूल में उन्होंने दाखिला लिया 2 वर्ष तक जमकर पढ़ाई की और मद्रास विश्वविद्यालय में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली  परीक्षा में राधाकृष्णन को इतने अच्छे अंक प्राप्त हुए थे कि उन्हें छात्रवृत्ति मिलने लगी

मैट्रिक के बाद उन्होंने बुराही कॉलेज में दाखिला ले लिया यहां भी बाइबिल रखने की कला का माई और प्रतिभा के कारण उन्हें अच्छी छात्रवृत्ति मिलने लगी इतना ही नहीं कॉलेज में उन्हें बाइबल योग्यता प्रमाण पत्र भी दिया गया था। 1904 में राधाकृष्णन ने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की गणित मनोवैज्ञानिक तथा इतिहास में विशेष योग्यता प्राप्त थी। 

इसके बाद उन्होंने चेन्नई के क्रिस्यन कॉलेज में स्नातक करने के लिए प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया इंटर की परीक्षा में अच्छे परिणाम आने के कारण उन्हें यहां भी छात्रवृत्ति मिलने लगी इसके मूल विषय के रूप में दर्शनशास्त्र को चुना सन 1906 मे राधाकृष्णन ने प्रथम श्रेणी तथा विशेष सम्मान सहित बीए की डिग्री प्राप्त की दर्शनशास्त्र में वे उस वर्ष पूरे विश्वविद्यालय में सर्वश्रेष्ठ छात्र घोषित किए गए थे  जनवरी 1909 में राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र से m.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की इस प्रकार डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का छात्र जीवन प्रारंभ हुआ था।

राधाकृष्णन का विवाह 

सन 1903  में 16 वर्ष की आयु में राधाकृष्णन का विवाह शिवकामू नामक 10 वर्षीय लड़की के साथ हुआ था लड़की साधारण पढ़े लिखे थे जिस समय शादी हुई वह पांचवी कक्षा में पढ़ रही थी विवाह के 3 वर्ष बाद गौन हुआ शिव कामू अपने  पति के घर आई  इस समय राधाकृष्णन की आयु 19 वर्ष थी और पत्नी 13 वर्ष का था राधाकृष्णन ने अपने पत्नी को प्यार से पदमा बुलाया करती थी राधाकृष्णन का रंग पत्नी के मुकाबले पक्का था वह 5 फुट 10 इंच लंबे थे लंबाई में जोड़ी बिल्कुल बेमेल लगती थी 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षक जीवन 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षक जीवन सबसे पहले नगर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने से प्रारंभ हुआ  फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज चेन्नई में मलयालम मास्टर का पद राधाकृष्णन ने संभाला उस समय उसके वेतन ₹60 प्रति माह था राधाकृष्णन को मलयालम नहीं आती थी फिर भी उन्हें या नौकरी क्यों दी गई उसका किस आधार पर चयन हुआ वह परेशान थे,

उन्हें कार्यालय में ही काम दे दिया और शीघ्र ही दर्शनशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में नियुक्ति दे दी इसके बाद 1914 में डॉ राधाकृष्णन असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए राधाकृष्णन ब्राह्मण थे उनकी खिलाफत शुरू हो गई और 1916 में उन्हें आंध्र प्रदेश क्षेत्र के अनंतपुर नामक स्थान पर जूनियर लेक्चरर बनाकर भेज दिया गया फिर उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में  प्रोफेसर बन गए ,

मैसूर के कॉलेज में राधाकृष्णन को दर्शनशास्त्र के विभाग में प्रोफेसर तथा विभागीय अध्यक्ष बनाया गया जुलाई 1918 में राधाकृष्णन मैसूर के अतिरिक्त प्रोफेसर नियुक्त किए गए या नियुक्ति 5 वर्ष के लिए थे फिर वह 1921 में मैसूर से कोलकाता आ गए और कोलकाता विश्वविद्यालय मे दर्शन शास्त्र के उन्हें बुलाया गया  उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया।

समय के बाद राधाकृष्णन को आंध्र विश्वविद्यालय का उपकुलपति बना दिया गया और राधाकृष्णन का उपकुलपति काल विश्वविद्यालय के इतिहास में एक मिसाल माना जाता है। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन

प्रोफेसर राधाकृष्णन के जीवन की एक बहुत बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने पूर्व के दर्शन तथा पाश्चात्य दर्शन के बीच सेतु बनाया और पूरी दुनिया को प्रचारित धरातल पर जोड़ने में कामयाब रहे उनके दार्शनिक विचारों ने भारतीय विचारों को इसलिए प्रभावित किया क्योंकि वह भारतीय दार्शनिक सिद्धांतों को विश्व भर में पहुंचाने का काम कर रहे थे फिर उन्होंने राजनीतिक में कई आंदोलन में भागीदारी बने और अंग्रेजों को यहां से खदेड़ कर निकालने में इनका भी भागीदारी रहा । 

सन 1952 से 1957 तक पूरे 5 वर्ष तक राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति का दायित्व निभाया तथा नेहरु जी का पूरा सहयोग किया और उलझी हुई समस्या को सुलझाने के लिए वे सबसे आगे आए उन्होंने समाधान भी निकाला सन 1957 से 1962 तक भारतीय राजनीतिक में अनेक बाधाएं उत्पन्न हुई यह समय काफी मुश्किल से गुजर रहा था जिन विषम परिस्थितियों से देश गुजर रहा था और जवाहरलाल नेहरू अलग-थलग पढ़े जा रहे थे उन्हें देखते हुए राधाकृष्णन ने पूरे 5 साल नेहरू जी का पूर्ण सहयोग किया,

मई 1962 में राधा कृष्ण राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण किया और अनेक बाधाओं को शांति पूर्वक निपटाया। इसी वर्ष चीन ने भारत पर हमला किया और चीन के हाथों भारत भारत को हार का सामना करना पड़ा इस समय नेहरू जी को पूरा समर्थन का विश्वास दिलाने के बाद चीन ने अचानक भारत पर हमला किया था इसके बाद राधाकृष्णन अमेरिका पहुंचे और अमेरिका के अलावा सोवियत संघ ब्रिटेन फ्रांस को भी विश्वास में ले लिया,

और संयुक्त राष्ट्र संघ में इन देशों से चीन पर दबाव बढ़ाया कि वह भारत में युद्ध विराम करें अंततः वह समय आ गया जब चीन ने भारत से अपनी सेना वापिस बुला ली और युद्ध विराम की घोषणा कर इस प्रकार राधाकृष्णन की छवि विदेशों में बहुत अच्छी थी राजनीतिक ना होने के कारण वह एक परम विश्वसनीय व्यक्ति समझे जाते थे भारत को इस बात का लाभ मिला और संकट टल गया। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राष्ट्रपति पद से अवकाश 

मई 1967 में डॉक्टर राधाकृष्णन का राष्ट्रपति पद का कार्यालय पूरा हुआ । 1962 से 1967 तक वह भारत के राष्ट्रपति रहे । उनका राष्ट्रपति काल अनेक मामलों में अलग तरह का था राष्ट्रपति भवन में कभी ठाठ बाट से नहीं है विचार की दुनिया के आदमी थे सदा जीवन उच्च विचार उनकी जीवनशैली थी राष्ट्रपति भवन में भी चारपाई पर सोया करता था अपनी दिनचर्या बिल्कुल दुरुस्त रखते थे लेकिन पढ़ना लिखना वह विधिवत जारी रखा उनका राष्ट्रपति काल काफी चुनौतियों से भरा रहा वह हर समय देश को संभालने और सुधारने की लगन रहता था हर पल या चिंता रहती थी कि मौजूदा समस्याओं का समाधान कैसे तलाशा जाए।

9 अप्रैल 1967 में उन्होंने राष्ट्रपति भवन को छोड़ दिया उन्हें विदाई देने के लिए कांग्रेश तथा विपक्ष के नेता बड़ी संख्या में एकत्रित हुए डॉ राधाकृष्णन पूरी तरह गैर राजनीतिक व्यक्ति थे उन्होंने अपने 10 वर्ष के उपराष्ट्रपति काल तथा 5 वर्ष के राष्ट्रपति काल में किसी पार्टी का पक्ष नहीं लिया विपक्ष भी उनसे बहुत खुश था उनका व्यवहार सब के प्रति मित्रता से भरा रहा और देश के हित में जो ठीक था केवल वही करते थे उन्होंने इस अवधि में अपने परिवार के लिए विशेष रूप से कुछ नहीं किया वह एक निष्पक्ष व्यक्ति थे उनके कार्यकाल को आज भी देश में आदर्श कार्यकाल माना जाता है। 

शिक्षक दिवस 

हमारे देश के दूसरा राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) के  रूप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है इस दिन भारत में भारत सरकार के द्वारा सर्वशष्ठ शिक्षकों को पुरस्कृत किया जाता है तथा भारत के सभी स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक दिवस को धूमधाम से मनाया जाता है साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम पर भाषण देकर लोगों में इसके प्रति जागरूक किया जाता है जिससे अधिक से अधिक लोग डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के तरह बनकर पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन करें। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अंतिम सफर 

वे सन 1967 से 1973 तक 6 वर्ष मद्रास में अपने परिवार के साथ रहे उन्हें लोगों से घिरे रहने तथा सदा सत्य जीवन बिताने की आदत सी पड़ गई थे परंतु अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्हें अकेले रहना पढ़ता था 

अकेला रहना उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगता था अभी वह पढ़ने लिखने में समय बिताते थे परंतु उम्र ज्यादा होने के कारण कुछ खास पढ़ नहीं पाते थे बार-बर स्नेह भरे पत्रों को पढ़कर अपने दिल को सुकून महसूस कराया करते थे और आंखों में आंसू छलक पड़ते थे 1973 में उसके मस्तिष्क पर ब्रेन स्ट्रोक हुआ और उसकी वाणी मूक हो गई इसके बाद उसका चिकित्सा चलता रहा परंतु ठीक ना हो पाया  1975 मे उन्हें टेपटन प्राइस फॉर प्रोग्रेस रिलीजन का पुरस्कार मिला इस सूचना को ठीक से समझ पाने की क्षमता भी उसमें नहीं बची थी इस प्रकार में मिला धन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को भिजवा दिया। अन्तत : 17 अप्रैल 1975 को उनकी मृत्यु हो गई। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कब से कब तक राष्ट्रपति रहा था


13 मई 1962 - 13 मई 1967 तक 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कब से कब तक उपराष्ट्रपति पद पर रहा था 


13  मई 1952 - 13 मई 1962 तक कुल 10 वर्ष तक रहा 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब और कहा हुआ था


5 सितंबर 1888  तिरुताणी , तमिलनाडु , भारत 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मृत्यु कब हुआ?


17 अप्रैल 1975 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के माता-पिता का क्या नाम था


पिता ;- सर्वपल्ली वी रामास्वामी 
माता :- सीतम्मा 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कितने भाई बहन थे


5 भाई और 1 बहन 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पत्नी का क्या नाम था


शिवकामु उसे प्यार से  पदमा बुलाते थे 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कितने बच्चे थे।


4 पुत्रियां शकुंतला, रुकमणी, कस्तूरी ,सुमित्रा,और 1 पुत्र सर्वपल्ली गोपाल 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन किस पार्टी से थे?


राजनीतिक स्वतंत्र पार्टी 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन किस धर्म के थे?


हिंदू 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के राष्ट्रपति के समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था?


गुलजारी लाल नंदा 
पंडित जवाहरलाल नेहरु 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति के समय भारत का राष्ट्रपति कौन था?


डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न कब मिला?


1954 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रूप में क्या मनाते हैं।


5 सितंबर शिक्षक दिवस

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत कौन सा  राष्ट्रपति था ?

दूसरे 2 

निष्कर्ष 

हमे उम्मीद है कि मेरे टीम द्वारा दिया गया जानकारी डॉक्टर सर्वपल्ली राधाक्रिशानन का जीवन का परिचय आपको बहुत पसंद आया होगा , इसके साथ ही हमें अवश्य बताये की यह लेख आपको कैसा लगा और इसे अधिक से अधिक दोस्तों के बीच सोशल मिडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जरुर शेयर करे, किसी भी प्रकार के सवाल के लिय हमें comment अवश्य करे हम आपके प्रशन के उत्तर देने के लिए तत्पर है, धन्यबाद 

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