भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान स्वरूप कोई एक दिन की संरचना नहीं है इसकी मूल सूत्र की जड़ें काफी गहरी है 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी से पहले लगभग 200 वर्षों तक भारत अंग्रेजी शासन का गुलाम था उस समय भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था लेकिन अंग्रेजी शासन ने सोने की चिड़िया का भरपूर शोषण किया तथा जमकर लूटा जिसके कारण भारत में आर्थिक विकास की गति मंद या नगण्य रही।

आजादी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था का समजिक आर्थिक राजनीतिक सांस्कृतिक पुनरुत्थान कर दुनिया की एक अग्रणी अर्थव्यवस्था के रूप में प्रस्तुत करना हमारे नीति निर्धारकों के समक्ष चुनौती थी।

इस अध्ययन में अर्थव्यवस्था का परिचय एवं इसके विकास का इतिहास देश के आर्थिक विकास में विभिन्न राज्यों का भूमिका मूलभूत आवश्यकताएं एवं विकास का संबंध आदि बातों को ध्यान में रखकर इस पर प्रकाश डाला जाएगा अंग्रेजी शासन करीब 200 वर्ष तक भारत को गुलाम रखा और यहां से कीमती चीजें अपने देश में स्थानांतरित कर लिया जिसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था की गति नगरनी हो गई इसका विकास अवरुद्ध हो गया तो चलिए शुरू करते हैं अर्थव्यवस्था के मूलभूत इकाइयों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करें गे।

अर्थव्यवस्था का परिचय introduce of indian economics


अर्थव्यवस्था पर निबंध
अंग्रेजी शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपना एक उपनिवेश बना कर रखा था । इसलिए उन्होंने  फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाकर भारत को अपना दास बना कर रखाा । ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था  कृषि प्रधान होने के बावजूद उद्योग व्यापार यातायात आधारभूत संरचना में अन्य कई महत्वपूर्ण देशों की तुलना में अच्छी स्थिति मेंं थी लेकिन शोषण और दमनकारी नीति के कारण भारत की स्थिति जर्जर हो गई गरीबी और और  

अशिक्षा अंधविश्वास विषमता तथा शोषण का साम्राज्य था अंग्रेजी शासन के लगभग 200 वर्षों में भारत अर्थव्यवस्था में कोई विकास नहीं हुआ प्रति व्यक्ति आय की स्थिति कृषि पर जनसंख्या की बढ़ती निर्भरता हस्तशिल्प उद्योग का पतन तथा उसके बाद लगभग नष्ट हुए औद्योगिक व्यवस्था इस बात को पूरी तरह स्पष्ट कर देते हैं कि अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का भरपूर शोषण किया। 

जब कोई भी देश किसी बड़े समृद्ध शाली राष्ट्र के शासन के अंतर्गत रहता है और उसके समस्त आर्थिक एवं व्यवसायिक कार्यो का निर्देशन एवं नियंत्रण शासक का होता है तो ऐसे शासित देश को शासक देश का उपनिवेश कहा जाता है भारत करीब 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन का एक उपनिवेश था।  

अर्थव्यवस्था का अर्थ

हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं जी पराया सभी लोग अपनी आजीविका के अर्जुन के लिए विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में लगे रहते हैं इनकी क्रियाएं मुख्य रूप से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से संबंधित होता है उदाहरण के लिए किसान खेत एवं खा लियानो में , मजदूर कल कारखाना में, शिक्षक स्कूल तथा कॉलेज में एवं वकील कोर्ट कचहरी में अपने कार्य में लगे रहते हैं यह सभी अपने अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। यह सभी लोग धन कमाने के उद्देश्य से विभिन्न आर्थिक के गांव में लगे हुए हैं जिससे उसके परिवार के सदस्यों की आवश्यकताएं पूर्ति हो सके हमारे हुए सभी क्रियाएं जिनसे हमें आय प्राप्त होती है आर्थिक क्रियाएं कहा जाता है।

अर्थव्यवस्था एक ऐसा ढांचा है जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएं संपादित की जाती है जैसे कृषि उद्योग व्यापार बैंकिंग बीमा परिवहन तथा संचार आदि यह आर्थिक न्याय एक और से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है तो दूसरी ओर लोगों को रोजगार का अवसर भी प्रदान करती है ताकि वह सभी अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु देश में उत्पादित वस्तुओं सेवाओं का क्रय कर सकें इस तरह प्रत्येक अर्थव्यवस्था दो प्रमुख कार्य संपादित करती है एक नंबर लोगों को आवश्यकता की संतुष्टि के लिए भिन्न प्रकार की वस्तुओं सेवाओं का उत्पादन करती है दूसरा नंबर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है संक्षेप में अर्थव्यवस्था समाज की सभी आर्थिक क्रियाओं का योग है। 

ठीक इसी प्रकार भारत के सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था का अर्थ राज्य के पोर्न संपूर्ण आर्थिक क्रियाओं के अध्ययन से है जिसके आधार पर राज्य की मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए राज्य के संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। 

अर्थव्यवस्था की संरचना


अर्थव्यवस्था का विकास

अर्थव्यवस्था की संरचना का मतलब विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इनके विभाजन से है चुकी अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक दी जाएं तथा गतिविधियां संपादित की जाती है जैसे कृषि उद्योग व्यापार बैंकिंग बीमा परिवहन संचार आदि इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जाता है।

1 प्राथमिक क्षेत्र

2 द्वितीय क्षेत्र

3 तृतीय क्षेत्र या सेवा क्षेत्र

सभी अर्थव्यवस्था की तरह भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना को भी तीन भागों में बांटा जा सकता है भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना को निम्नलिखित द्वारा समझा जा सकता है

1 प्राथमिक क्षेत्र। 

प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है इसके अंतर्गत कृषि पशुपालन मछली पालन जंगलों से वस्तु को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं।

2 द्वितीय क्षेत्र

दूधिया क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है इसके अंतर्गत खनिज व्यवसाय निर्माण कार्य जनोपयोगी सेवाएं जैसे गए और बिजली के उत्पादन इसके अंतर्गत आते हैं।

3 तृतीय क्षेत्र

तृतीय क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है इसके अंतर्गत बैंकिंग एवं बीमा परिवहन संचार व्यापार आदि क्रियाएं सम्मिलित होती है यह कि प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र की क्रियाओं की सहायता से प्रदान की जाती है इसलिए इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।

अर्थव्यवस्था के प्रकार

आज विश्व में तीन प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती है,

1 पूंजीवादी अर्थव्यवस्था 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहां उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है जो इनका उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं जैसे अमेरिका जापान ऑस्ट्रेलिया रूस आदि 

2 समाजवादी अर्थव्यवस्था 

समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है उत्पादन के साधनों का स्वामी एवं संचालन देश की सरकार के पास होता है जिसका उपयोग सामाजिक कल्याण के लिए किया जाता है चीन क्यूबा आदि देशों में समाजवादी अर्थव्यवस्था है विगत वर्षों में भूमंडलीकरण में उदासी करण के कारण समाजवादी अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने लगा है।

3 मिश्रित अर्थव्यवस्था 

मिश्रित अर्थव्यवस्था पूंजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण है मिश्रित अर्थव्यवस्था हुआ अर्थव्यवस्था है जहां उत्पादन के साधन का स्वामित्व सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास होता है भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है यह अर्थव्यवस्था पूंजीवादी एवं समाजवादी के बीच का रास्ता है।

अर्थव्यवस्था का विकास 

अर्थव्यवस्था का विकास

अर्थव्यवस्था के विकास का एक लंबा इतिहास है अर्थव्यवस्था का विकास एक पौधे के विकास की तरह होता है जिस तरह एक पौधे का क्रम से विकास होता है और परिपक्वता की स्थिति में उसके फल डाली आदि का उपयोग मानव हित में होता है ठीक उसी तरह एक अर्थव्यवस्था का आदिकाल से अब तक विकास हुआ है अर्थव्यवस्था में हुए परिवर्तन को हम अर्थव्यवस्था के विकास की कहानी का सकते हैं अर्थव्यवस्था के किसी विकास को देखने के लिए हमें अपने देश भारत के आर्थिक विकास की स्थिति को देखना होगा भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की स्थिति किसी एक समय की चमत्कारी स्थिति नहीं है इसका एक अपना अलग इतिहास है।

अर्थव्यवस्था विकास के लिए हम निम्नलिखित स्थितियों का विवेचन करेंगे जो दोनों ही पारस्परिक सहयोगी क्रियाई हैं 

1 आर्थिक विकास 

पहले हम आर्थिक विकास की चर्चा करेंगे जो आर्थिक नियोजन के द्वारा संपन्न होता है इससे पहले जान लेना आवश्यक है कि आर्थिक विकास है क्या?

ऐसे तो आर्थिक विकास की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद है इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकती फिर भी आप इसकी कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा को जान ले । आर्थिक विकास एक और श्रम शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी और जनसंख्या में वृद्धि के बीच का संबंध है। वही दूसरे अर्थशास्त्री का कहना है कि आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है । जहां तक आर्थिक प्रगति की बात है या एक व्यापक शब्द है इसका प्रयोग किसी आर्थिक इकाई के लिए किया जा सकता है

 इसमें आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास दोनों ही शामिल रहता है पराया आर्थिक प्रगति के स्थान पर आर्थिक वृद्धि या आर्थिक विकास शब्दों का प्रयोग होता है आर्थिक वृद्धि और आर्थिक विकास एक दूसरे के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं सच पूछा जाए तो विकास शब्द का अर्थ भी शामिल रहता है आर्थिक विकास आर्थिक प्रगति में कोई खास अंतर नहीं है इन तीनों को व्यवहार में एक ही जैसा समझा जा सकता है प्रोफेसर लेबीस का यह राय है । 

आर्थिक नियोजन का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना है भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को किया गया था अध्यक्ष के पदेन अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं सामान्य कामकाज एक उपाध्यक्ष की देखरेख मे होता है जिसकी के लिए आयोग के 8 सदस्य होते हैं, राष्ट्रीय विकास परिषद भारत में राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन 6 अगस्त 1952 को किया गया था ,

इसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्य सरकारों तथा योजना आयोग के बीच तालमेल तथा सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था राष्ट्रीय विकास परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के पदेन अध्यक्ष होते हैं प्रत्येक पंचवर्षीय योजना बनाने का कार्य योजना आयोग का है और अंत में या राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा अनुमोदित होती है। 

2 मैद्रिक विकास 

वर्तमान 21वीं शताब्दी में मनुष्य को अनेक प्रकार के सुख सुविधाएं उपलब्ध है यदि हम इसके पीछे के इतिहास में देखें तो लगता है कि विगत कई वर्षों में इन सुख सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए मनुष्य को कठिन परिश्रम करना पड़ता है जब मुद्रा का विकास नहीं हुआ था तो लोग वस्तु से वस्तु का लेनदेन कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे अर्थव्यवस्था की उस अवस्था को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है,

 वह अवस्था आर्थिक विकास का प्रारंभिक अवस्था थी उस समय मनुष्य की संख्या तथा आवश्यकता दोनों ही कम थी इसलिए वस्तु के लेनदेन से उसकी आवश्यकताएं की पूर्ति हो जाया करती थी लेकिन बाद में लोगों की आवश्यकता है बढ़ती चली गई और उनकी संख्या बढ़ने के कारण और छोटे से लेकर बड़े गांव एवं क्षेत्र में लाभ होने लगा मनुष्य के आधार पर एक सामान्य मुद्रा का दुष्प्रभाव हुआ दराज क्षेत्रों से भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनाज या अन्य बस्तियों के बंडल को ले जाने की जरूरत नहीं थी ,

क्योंकि मुद्रा एक और सम्मानित करें दूसरे के साधन का कार्य करने लगा अर्थव्यवस्था के विकास के इसी काल में व्यक्तियों के समूह पर शासन करने के लिए एक सरकार का अभ्युदय हुआ सरकार की स्वीकृति तथा जनता के विश्वास से मुद्रा का चलन होने लगा अर्थव्यवस्था के विकास के साथ सब लोग मुद्रा से भी हल्की चीजों की आवश्यकता महसूस करने लगे । 

आज के युग में मानवीय मस्तिष्क का लगभग सारा कार्य मशीन के द्वारा होने लगा जिसे हम कंप्यूटर कहते हैं यह मानवीय मशीन मानव के द्वारा किया गया अविष्कार का परिणाम है जो मनुष्य से भी अधिक थे जिसमें शक्ति रखता है बिजली से चलने वाला यह मशीन जिसे हम कंप्यूटर कहते है । आजकल कंप्यूटर सूचना शिक्षा एवं ज्ञान का सर्व दुर्लभ साधन हो गया है प्रयोग एवं वैज्ञानिक आविष्कार के कारण पहले जहां बड़ा कंप्यूटर का उपयोग होता था वही लैपटॉप का भी प्रचलन में हो गया इसी प्रकार बैंकिंग प्रणाली में भी बहुत सारे क्रियाओं का अवमूल्यन हुआ जो आज के समय में सभी लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ

मैद्रिक विकाश की संक्षिप्त विवरण 

1 वस्तु विनिमय   :-प्रणाली वस्तु से वस्तु का लेनदेन

2 मेट्रिक प्रणाली   :-   मुद्रा से वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय

3 बैंकिंग प्रणाली   :- बैंक के माध्यम से चेक के द्वारा बीमा की क्रिया का संपादन

4 कोर बैंकिंग प्रणाली  :- इसके अंतर्गत एक संकेत से एक व्यक्ति के खाते से दूर अवस्थित दूसरे व्यक्ति को उसी बैंक के माध्यम से पैसा का हस्तांतरण

5 एटीएम प्रणाली   :-प्लास्टिक के एक छोटे से कार्ड पर अंकित सूक्ष्म संकेत के आधार पर कहीं भी तथा किसी भी समय निर्धारित बैंक के केंद्र से पैसे निकालने की सुविधा

6 डेबिट कार्ड   :- बैंक द्वारा दिया गया प्लास्टिक का कार्ड जिसके द्वारा बैंक में अपनी जमा राशि के पैसे का उपयोग करना

7 क्रेडिट कार्ड   :- बैंक द्वारा जारी किया गया प्लास्टिक का एक कार्ड जिसके आधार पर उसके धारक द्वारा पैसे अथवा वस्तु  प्राप्त कर लेना 

आर्थिक विकास की माप एवम सूचकांक 

राष्ट्रीय आय

राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है किसी देश में 1 वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मैद्रिक मूल्य  के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है सामान्य तौर पर किस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है वह देश विकसित काल आता है और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता है वह देश अविकसित कहलाता है ।

प्रति व्यक्ति आय 

आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की आवश्यकता होती है राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भाग्य बनाता है वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है।                      

प्रति व्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय \ कुल जनसंख्या 

मानव विकास का सूचकांक 

अर्थव्यवस्था का विकास

यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा महबूब उल हक के निर्देशक में तैयार की गई पहली मानव विकास रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देश की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर की जाती है जहां तक मानव विकास सूचकांक का प्रश्न है इसे तीन भागों में बांटा गया है।

1 जीवन आशा 

2 शिक्षा प्राप्त

3 जीवन उसका

HDI = जीवन आशा +शिक्षा प्राप्ति + जीवन स्तर 

निष्कर्ष 

हमें उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था पर निबंध आपको बहुत पसंद आया होगा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस आर्टिकल को पहुंचाएं तथा इससे संबंधित किसी भी त्रुटि के लिए कोई भी सवाल है तो हमें कमेंट करें उसमें सुधार किया जा सकता है।


Post a Comment