आधुनिक काल के बेहद प्रतिष्ठित कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर लिखी गई या जीवनी एक संवेदनशील साहित्यकार है के सरोकारों और संघर्ष को प्रकट करती है निराला के व्यक्तित्व और जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं का उद्घाटन करना इस पोस्ट को मुख्य उद्देश्य है।



सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महान कवि का निबंध  



सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महान कवि का निबंध



महा कवि रहीम के प्रसिद्ध दोहे किया एक पंक्ति महाकवि निराला पर सटीक बैठती है जो रहीम द्दीनही  लखै दीनबंधु सम होय ।  निराला सचमुच दोनों 

को ही बराबर लिखते थे और उन्हें लिखते लिखते हैं वह भी दीनबंधु के समान हो गए थे दीनबंधु के समान ना हुए होते तो समस्त हिंदी संसार में आज उनकी जैसी लोकप्रियता दिख पड़ती है वैसे आजकल किसी साहित्यकार की नहीं दिख रही है सर्वत्र उनकी अर्चना बड़ी श्रद्धा से हो रही है बड़े-बड़े धुरंधर महारथी साहित्य संसार से चले गए किसी को निराला के समान सार्वजनिक समान नहीं मिला अपने जीवन काल में ही हुआ साहित्य अनुरागी यों के लिए आकर्षण केंद्र और श्रद्धा भाजन बने रहे मृत्यु के बाद भी उनका सादर स्मरण विविध प्रकार से किया जा रहा है यह उनके पुण्य आचरण का ही प्रभाव है पुण्य सील के पास शब्द विभूतियां आप ही आप आती है दीनबंधु ता से बढ़कर पुण्य सील और है ही क्या। हर घड़ी उसके मन में दिनों की सेवा शुशरूषा की कामना ही जग आती रही।



 निराला केबल दरिद्र नारायण को भोज्य पदार्थ वितरित करने का ही काम आपने जिम्मा लेता था कल वालों को खिलाने में उनकी गहरी लगन देख लोग मुक्त हो रहे थे वह अधिकतर बंगिया भद्र समाज ही जुड़ता थ भागवत विभूतियां उन्हें खूब मिली थी आकर्षक रूप लंबे तगड़े डीलडोल का शरीर भगवान ने उन्हें सबकुछ भरपूर दिया था हर तरह से सिरजनहार ने उन्हें सहारा था जिस मंडली में बैठ जाते थे उसे अपने व्यक्तित्व से जगमगा देते थे कोलकाता में एक बार एक धनी माननीय परिवार से उसके विवाह का प्रस्ताव भी आया था पर वह तो एक पत्नी व्रत भी थे उसके पास तो युक्तियां छात्राएं भी साहित्यिक उद्देश्य से आती थी छात्र भी आते थे पर वह किसी छात्रा से वार्तालाप करते समय आंखें बराबर नहीं करते थे कामिनी कंचन का त्याग करके गृहस्थ श्रम सन्यासी बनी रह धन उनके पास अतिथि के समान अल्प विधि तक ही टिकने आता था अगर हजार रुपया पहले आया तो डेढ़ हजार का चिट्ठा पहले से तैयार है वह वाह मर भूखों की ओर दौड़ जाते थे जिसके ललही नामंगल नाही ते नरवर तेरे जग माही उन्हें थोड़े लोगों में वह भी एक थे ,  


मतवाला मंडल में भीखमंकी की समस्या और अखबारों में छपे इस विषय के समाचार पर आंखों पर जब कभी बातचीत होती थी यदि निराला जी मोहब्बत रहते हैं बड़े आदेश में हुए अपने युक्ति युक्त तर्क उपस्थित करते पूरे देश में फैले हुए आर्थिक विषमता पर शब्द आस्त्र संधान करते समय उग्र कम साम्यवादी प्रतीत होते थे हष्ट पुष्ट शिक्षकों के प्रति उनकी  सहानुभूति भी उन्मुख नहीं थी 

भिखारियों की दयनीय स्थिति देखकर वह शासन और समाज की तीव्र आलोचना किया करते थे लंगड़े लूले अंधे कोड़ी और निगम में पर उनकी दृष्टि भटकती थी फिर तो वह अपने वास्तविक परिस्थिति को बिल्कुल भूल जाते थे कोलकाता महानगर की दोनों परियों पर ढूंढते फिरते थे कि कौन बेचारा कैसी दुर्गति में है अधिकांश अवकाश काल दोनों की दुनिया में ही बीता था वहां फुट बातों पर भिखारियों के सिवा बहुतेरे निराश्रित गरीब और खुली कबाड़ी भी रात में पड़े रहते थे उनके लिए भुजा चना मूंगफली आदि खरीद कर वितरण करने वाला धन कोइराला के सिवा कोई दूसरा नहीं था बड़े-बड़े गाने गोरा रात में पुन पटरी ऊपर से गुजरते थे पर कहीं-कहीं दो चार पैसे फेंकने वाले भले ही दिख जाया निराला की तरह उन दोनों से आत्मीय स्थापित करने वाले ढूंढे भी नहीं मिल सकते थे उस्मान नगर में नाना प्रकार के मनोरंजन के साधन क्या है क्या उन्हें उपलब्ध करने के लिए निराला को पैसे की कमी थी किंतु उनका मनोरंजन तो दीन दुखियों को सुखी पहुंचाना से था कोई मित्र उन्हें सिनेमा थिएटर भले ही ले जाए लेकिन उसके पैसे तो भूखे गरीब की सेवा में ही लगने पर अपने साथकर्ता  समझते थे।

निराला ना केवल शहरों या बाजारों और स्टेशनों के अंदर मिलने वाले दिन जानू पर ही ध्यान नहीं देते थे बल्कि अपने गांव और पड़ोसियों के गरीब गृहस्थ की सहायता का भी ध्यान रखते थे उनके गांव और जिले के कोई भी आदमी उनकी उदारता और दान चिंत की कहानी सुनकर उसके पास आते थे विचित्र भारती के होते थे परिचितों और कुटुंब हो के अतिरिक्त ऐसे लोग भी कोलकाता तक दौड़ लगाकर उनका पीछा करते थे जो उनसे किसी न किसी प्रकार का लगाओ जोड़कर उनके शील सौजन्य से लाभ लेते थ  भोजन के सिवा कपड़े जूते की मांग तो होती ही थी चलते समय राह खर्च की फरमाइश भी होती थी देखने वाले को भले ही या नागवार मालूम होता हो पर निराला की शक्ति भाग नहीं होती थी शांति तो तभी भंग होती थी जब किसी जरूरतमंद की मदद नहीं कर सकते थे किसी आदमी को अपने से अनुचित लाभ उठाते देखकर भी उनके धर्म को ठेस नहीं लगती थी दूसरों के अभाव को अपने ऊपर और लेने से भी उनका शांत दम इन्हें कभी विचलित होता नहीं था अगर कोई कहता था कि आप इतना खटराज क्यों पलटते हैं ऐसे पर मुंडा फलाहार करने वालों को टकराया कीजिए तो मुस्कुराकर ही रह जाते थे उनको भला सीख कौन दे सकता था वह तो स्वयं ही नीति और धर्म के मर्मज्ञ व्यक्ति थे।



यह विशेषता निराला में देख ही गई थी कि अपनी आवश्यकताओं को भूल कर दूसरों की आवश्यकताओं को दूर करने के लिए परेशानियां और कठिनाइयों झेलने में अधीर नहीं होते थे उन्हें अपने खाने-पीने या कपड़े लगते की कभी चिंता ही नहीं हुई अच्छा कपड़ा जूता भी कुछ दिन तक उसके पास टिक्का था तो शक रजाई तक किसी को दे डालने में तनिक हिचक ना होती थी ना उसके पास पूंजी रह पाती थी और ना ही कभी कपड़े या रुपैया पैसे रखने के लिए बॉक्स ही खरीदा गद्दे या लिफाफा की परवाह ना करके जैसे तैसे सो रहे हैं और उतने ही में आराम से दिन गुजार लिए सुंदर पलंगिया शानदार कुर्सी मेज  की कभी कामना ही नहीं की जिस कमरे में रहना है उनकी सजावट का कभी सपना भी ना देख अपनी कमाई के पैसे से कभी भोग विलास की सामग्री नहीं खरीदी कोलकाता छोड़ने पर जब वह लखनऊ और प्रयाग में रहे तब भी मस्त मौला फकीर की तरह ही जीवन यापन करते रहे जहां कहीं रहे आसपास के दुकानदारों को मुंह मांगा दाम देकर निहाल कर दिया इकके तांगेवाले  वाले भी उनकी दरिया दिल से परिचित थे।

और उन्हें देखते ही दूसरे के साथ है क्या हुआ भाड़ा छोड़कर सा ग्रह दिखा लेते थे अड़ोस पड़ोस के गरीब उनसे इतने अधिक प्रिय रहते थे कि उन्हें राह चलते हैं आशीष ने लगते थे याचिकाओं के लिए तो कल्पतरु थे ही अपने मित्रों के लिए मुक्त हस्त दोस्त थे । मित्रों और अतिथियों के स्वागत सत्कार का वैसा हौसला अब देखने में नहीं आ रहा बहुत से लोगों को निराला संबंधी यह बातें अतिरंजित जान पड़ेगी आधुनिक युग में ऐसी बातें कॉम अतिशयोक्ति समझने वाले सज्जन यह सोचे तो सही कि भूखे को देखते ही अपने आगे परोसी हुई थाली उसके सामने रख देने वाला कितना महानुभाव आज के समाज को विभूति  करते हैं निराला खुद मामूली कपड़ों में गुर्जर करके गरीबों को अपने नए कपड़ों को उड़ा देते थे उस तरह के आचरण के लोग साहित्य जगत में तो नहीं देखे गए जिस व्यक्ति में अन्याय लोगों से अधिक विशिष्ट गुण हो उनका स्मरण ना करना या कराना ईश्वर की दी हुई वाणी को व्यर्थ करना है।   


मुझे लगता है कि  सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के बारे में जानकर आप लोग हैरान हो गए होंगे लेकिन हैरान होने की कोई बात नहीं सत्य सत्य होता है यह बिल्कुल सही बात है की निराला जी अपने आप को कभी उस प्रकार ध्यान ही नहीं दिया जिस प्रकार भिखारियों की ओर ध्यान देता था गरीबों की ओर ध्यान देता था असहाय को मदद करना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी अगर वह मदद नहीं कर पाते थे तो उन्हें अपने बारे में बुरे ख्याल आते आते रहते थे इसलिए आजकल इस तरह के व्यक्ति कहां मिलेंगे एक एक प्रकार से देखा जाए तो या भगवान का ही दूसरा रूप था जिसे सब की मदद करने के लिए ऊपर वाले ने भेजा था।


                                आचार्य शिवपूजन सहाय 




सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महान कवि का कहानी 


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