बिहार की विभूतियों में जननायक कर्पूरी ठाकुर अत्यंत सम्माननीय है इस पाठ में उनकी जीवन यात्रा के उल्लेखनीय वालों का उद्घाटन किया गया है जिससे उसके जीवन सृष्टि संघर्ष राजनीतिक विवेक के साथ साथ मानवीय मूल्यों का भी पता चलता है इस कहानी में जननायक कर्पूरी ठाकुर के संघर्षों का तथा उनके द्वारा किए गए संघर्षशील प्रयत्नों को ध्यान में रखा गया है तो आइए शुरू करते हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर के बारे में ,


जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवनी



जननायक कर्पूरी ठाकुर का स्वत्रन्त्र  यात्रा 


यह कहानी है गरीबों के मसीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर का जिनमें बचपन से ही नेतृत्व क्षमता का स्वभाव था 1942 ईस्वी में अगस्त क्रांति के दौरान मैंने स्वयं तो कॉलेज का त्याग किया है साथ ही साथ आसपास के विभिन्न शहरों के सभी स्कूल कॉलेजों में जा जाकर छात्रों को बहिष्कार के लिए प्रेरित किया लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित आजाद दस्त के  सक्रिय सदस्य थे  तंग आर्थिक स्थिति सेेेेेे निजात पाने के लिए  उन्होंने गांव के ही  मेंं

उन्होंने गांव के हैं मध्य विद्यालय में ₹30 प्रति माह की दर पर प्रधानाध्यापक का पद स्वीकार किया दिन में स्कूल में प्रधानाध्यापक का कार्य करते हैं और रात में आजाद दस्ता के सदस्य के रूप में जो जिम्मेदारी मिली थी उन्हें खूब निभाते 23 अक्टूबर 1943 ईस्वी को रात्रि लगभग 2:00 बजे हुए गिरफ्तार कर लिए गए और दरभंगा जेल में डाल दिए गए यह उनकी पहली रेल यात्रा थी


जननायक कर्पूरी ठाकुर का राजनितिक 


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1952 के प्रथम आम चुनाव में समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भारी मतों से बहुमत हुए थे बाढ़ भूख गरीबी बेकारी भ्रष्टाचार भूमि सुधार महगाई विकास इत्यादि समस्याओं पर उन्होंने विधानसभा के अंदर जोरदार आवाज बुलंद की सन 1952 से 1988 के अपने जीवन के अंतिम दिन तक विधानसभा के सदस्य रहे इस दौरान बिहार विधानसभा के कार्यवाहक अध्यक्ष विरोधी दल के नेता उपमुख्यमंत्री एवं दो बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री भी बने।


जननायक कर्पूरी ठाकुर का कुछ यादगार पहलू 


कर्पूरी ठाकुर 1957 में गांव का दौरा कर रहे थे उसी दौरान उन्होंने देखा कि हैजा  से  पीड़ित अपने जीवन का अंतिम क्षण गिन रहा था  अस्पताल भवन से काफी दूर था और उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं थी उसके परिजन उसे मरते देखने के लिए विवश थे लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने उस है जब पीड़ित व्यक्तियों को अपने कंधे पर उठाया और करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर उसे अस्पताल पहुंचाकर ही दम लिया जनसेवा और क्षेत्र को लोगों से जुड़ाव की मिसाल कम ही देखने को मिलती है उसके जीवन की ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिनमें उनका जनप्रिय व्यक्तित्व उभरता है पहली बार सचिवालय स्थित अपने कार्यालय कक्ष में जाने के लिए पहुंचे तो उन्हें ऊपरी तल पर ले जाने के लिए लिफ्ट से ले जाया गया लिफ्ट के ऊपर अंग्रेजी में लिखे वाक्य को पढ़ते ही चौक पड़े वहां लिखा था only for officers   शेष कर्मचारियों का आना जाना सीढ़ियों से होता था।  

 यानी केबल राजपत्रित पदाधिकारी ही  लिफ्ट का प्रयोग कर सकते थे और राजपत्रित कर्मचारी को उस दौरान नहीं गुजरने दिया करता था उन्हें सीढ़ियों से आना जाना पड़ता था कर्पूरी ठाकुर को इसमें सामंती प्रथा की बु आई उन्होंने सरकार के वरीय अधिकारी के प्रतिरोध के बावजूद लिफ्ट का प्रयोग सबके लिए आम कर दिया यानी अब  आराजपत्रित कर्मचारी के साथ-साथ सेक्सी वाले में काम करने वाले अन्य लोग भी लिफ्ट का प्रयोग कर सकते थे।


महान बनना तो सहज है लेकिन ऐसा बन्ना कि हर किसी को लगेगी वह तो अपने घर का है अपना है बहुत मुश्किल होता है 



जननायक कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तिगत जानकारी


 श्री कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के निकट पितौंझिया नामक गांव में 24 जनवरी 1924 को हुआ था उसकी माता का नाम राम दुलारी देवी और पिता का नाम गोकुल ठाकुर तथा पत्नी का नाम फुलेश्वरी देवी था ।



जननायक कर्पूरी ठाकुर के बचपन के दिन 


जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का बचपन अन्य गरीब परिवार के बच्चों की तरह खेलकूद तथा गाय और पशुओं को चराने में बिता कर्पूरी जी को दौड़ने और तैरने का बड़ा शौक था जब 6 वर्ष के हुए तभी उन्हें गांव की पाठशाला में दाखिल कराया वह पाठशाला भी जाते थे और पशुओं को भी चलाते थे जरवाही में ग्रामीण गीतों का गायन बिहार की आंचलिक संस्कृति की एक विशिष्ट परंपरा है बालक कर्पूरी इसमें विशेष रूचि लेता था श्री राजेंद्र शर्मा लिखते हैं इन्हें गीत गाने का और गांव की मंडली में बजाने का बड़ा शौक था होली और चैट गाने में गांव की मंडली में बराबर अगवरी करते रहे मंडली में बैठकर डक व जाने का काम तो मैं विधायक बन जाने पर भी किया करते थे



जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का शैक्षिक जीवन


सन 1940 ईस्वी में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की है दरभंगा के चंद्रधारी मिथिला कॉलेज में उन्होंने I.a.में नाम लिखवाया लेकिन कॉलेज आना जाना एक कठिन काम था आर्थिक अवस्था इतनी अच्छी नहीं थी कि वह किसी छात्रावास में रहकर पढ़ते । उन्होंने  अपने घर से ही घुटने तक धोती पहनी , कंधे पर गमछा रखें विना  जूता चप्पल पहने, पांव पैदल चलकर मुक्तापुर रेलवे स्टेशन पहुंचते थे वहीं से रेल गाड़ी पकड़ कर दरभंगा पहुंची है और कॉलेज में दिन भर  पढ़कर संध्या समय  लौटते इस तरह प्रतिदिन 50 से 60 किलोमीटर की यात्रा करते हुए कठिन शारीरिक श्रम के साथ 2 वर्ष तक पढ़ाई जारी रखा इतना कठोर जीवन बिताते हुए उन्होंने 1942 ईस्वी में आइए की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की।

स्नातक कला के प्रथम वर्ष में उसी कॉलेज में उन्होंने नामांकन करवाया लेकिन वे 1942 ईस्वी के अगस्त क्रांति में कूदने से पहले अपने को रोक ना सका । दरभंगा जिले में कुल व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने कैदियों को संगठित करना भी शुरू किया था।


जननायक कर्पूरी  ठाकुर का संघर्ष 


उन्होंने दरभंगा में कुव्यवस्था के खिलाफ कैदियों को संगठित करना शुरू किया इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर कैंप जेल स्थानांतरित कर दिया गया भागलपुर कैंप जेल में कैदियों की सुविधा के लिए 25 दिनों का उपवास कर सरकार को झुकने पर मजबूर किया सन 1952 ईस्वी से 1988 ईस्वी तक लगातार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे 1967 ईस्वी में बिहार के उप मुख्यमंत्री बने तथा 1970 से 1977 के बीच बिहार के मुख्यमंत्री पद को भी सुशोभित किया दलगत राजनीति से कर्पूरी ठाकुर को गहरा धक्का लगा 12 अगस्त 1987 को उन्हों विपक्ष के नेता पद से हटा दिया गया । 17 फरवरी 1988 को हार्ट अटैक के कारण जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का निधन हो गया।

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