रामधारी सिंह दिनकर के इस रोचक निबंध में जीवन के रोजमर्रा व्यवहारों पर टिप्पणी है और सही संतुलित जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण विकसित करने की सीख है जीवन कौशल अध्ययन का एक उल्लेखनीय पहलू है तनाव को कम करने में व्यक्ति की अपनी अंतरात्मा खास योगदान देती है यह निबंध इस अंतर्निहित समझ को विकसित करता है शीर्षक रोचक है और पहली नजर में पढ़ने का आमंत्रित देता है बिहार के यशस्वी साहित्यकार दिनकर के रचना संसार की विधि बता को भी समझने में सहायक महसूस करेंगे।

इश्या पर निबंध 

ईष्या : पर निबंध

मेरे घर के दाहिनी एक वकील रहते थे जो खाने-पीने से अच्छे हैं दोस्तों को भी खूब खिलाते हैं और सभासद पार्टियों में भी काफी भाग लेते हैं ऑल बच्चों से भरा पूरा परिवार नौकर भी सुख देने वाले और पत्नी भी अत्यंत मृदुभाषी भला एक सुखी मनुष्य को और क्या चाहिए?

मगर वह सुखी नहीं है उसके भीतर कौन सा दाह है जिस मनुष्य के हृदय में इसया घर बना लेती है वह उन चीजों से आनंद नहीं उठाता है जो उसके पास मौजूद है बल्कि उन वस्तुओं से दुख उठाता है जो दूसरों के पास है वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना के पक्ष में सभी आभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं दंश के इस दा को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है ।

 मगर  ईस्यालु मनुष्य करें भी तो क्या करें आदत से लाचार होकर उसे या वेदना भोगनी पड़ती है एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनंद नहीं लेना और बराबर इस चिंता में निगम में रहना की इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला एक दोस्त ऐसा है जिससे ईस्यालू  व्यक्ति  का चरित्र भी भयंकर हो उठता है अपने आभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते व सृष्टि की प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उद्द्यम करना छोड़ कर वह दूसरों को हानि पहुंचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझती है।

इश्या की बड़ी बेटी का नाम निंद्रा है जो व्यक्ति इश्यालू होता है वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी करता है दूसरों की निंदा हवाई इसलए करता है इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आंखों से गिर जाएंगे और तब जो अस्थान रिक्त होगा उस पर अनायास में ही बिठा दिखा जाऊंगा ।

मगर ऐसा ना आज तक हुआ है और ना ही होगा दूसरों को गिराने की कोशिश तो अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं की जा सकती, एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निंदा से नहीं गिरता उसके पतन का कारण अपने ही भीतर के सद्गुणों का ह्रास होता है इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से उसकी उन्नति नहीं कर सकता उन्नति तो उसकी तभी होगी जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों को विकास करें।

ईश्या का काम जलाना है मगर सबसे पहले वह उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है आप भी ऐसे बहुत से लोगों को जानते होंगे जो इश्या और द्वेष की साकार मूर्ति है और जो बराबर इस फिक्र में ही रहते हैं कि कहां सुनने वाला मिले कि अपने दिल का गुबार निकालने का मौका मिले श्रोता मिलते ही उनका ग्रामोफोन बजने लगता है और वह बड़े ही होशियारी के साथ हैं एक एक कांड इस ढंग से सुनाते हैं मानव विश्वकल्याण को छोड़कर उनका और कोई ध्यान नहीं हो। मगर जरा उनके सामने इतिहास को भी देखिए और समझने की कोशिश कीजिए कि जब से उन्होंने इस कुकर्म का आरंभ किया है,

तब से वे अपने क्षेत्र में आगे बढ़े हैं या पीछे आते हैं यह भी कि अगर वे निंदा करने में समय और शक्ति का अध्ययन नहीं करते तो आज उनका स्थान कहां होता चिंता को लोग चिता कहते हैं जिसे किसी प्रचंड चिता ने पकड़ लिया है उस बेचारे की जिंदगी ही खराब हो जाती है किंतु इश्या शायद चिंता से भी बदतर चीज है

क्योंकि वह मनुष्य के मौलिक गुणों को ही नष्ट कर डालती है मृत्यु शायद फिर भी श्रेष्ठ है बनिस्बत इसके कि हमें अपने गुणों को कुंठित बनाकर जीना पड़े चिंता दग्ध मनुष्य समाज की दया का पात्र है किंतु इश्या से जला भुना आदमी जहर की एक चलती फिरती गढवी के समान है जो हर जगह वायु को दूषित करती फिरती है।

 इसया  मनुष्य का चारित्रिक दोष ही नहीं बल्कि मनुष्य के अंदर में भी बाधा उत्पन्न करती है जब भी मनुष्य के हृदय में इसका निर्माण होता है सामने का सूर्य उससे मध्यम सा दिखाई देने लगता है पक्षियों के गीत में जादू नहीं रह जाता और फूल तो ऐसे हो जाते हैं मानो वह देखने योग्य ही नहीं है ।

 आप कहेंगे कि निदा के बान से अपने प्रतिद्वंद्वियों को ढेर कर हंसने में एक आनंद है और एश्यालु व्यक्ति  आनंद इस वाले व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार है । मगर यह हंसी मनुष्य की नहीं राक्षस की हंसी होती है और आनंद भी दैत्यों का आनंद होता है ।

इश्या का संबंध प्रतिद्वंद्वियों से होता है क्योंकि भीख मंगा करोड़पति से इस या नहीं करता यह एक ऐसी बात है जो एश्या  के पक्ष में भी पड़ सकती है , की प्रतिद्वंद्वियों से भी मनुष्य का विकास होता है किंतु अगर आप संसार व्यापी सुयश चाहते हैं तो आप रसेल के मतानुसार शायद नेपोलियन से स्पर्धा करेंगे मगर यह रखिए कि नेपोलियन भी सीजर से स्पर्धा करता था और सीजर सिकंदर से तथा सिकंदर हरक्यूलिस से जिस हरक्यूलिस के बारे में इतिहासकारों का यह मत है कि वह कभी पैदा ही नहीं हुआ।

ईशया एक पक्षी सचमुच ही लाभदायक हो सकता है जिसके अधीन हर आदमी हर जाति और हर दल अपने को अपने प्रतिद्वंदी का समकक्ष बनाना चाहता है किंतु यह तभी संभव है जबकि इश्यालु  व्यक्ति यह महसूस करता है कि कोई चीज है जो उसके भीतर नहीं है कोई वस्तु है जो दूसरों के पास है किंतु वह या नहीं समझ पाता कि इस वस्तु  को प्राप्त कैसे करना चाहिए गुस्से में आकर वह अपने किसी पड़ोसी मित्र या समकालीन व्यक्तियों को अपने से श्रेष्ठ मानकर उसे जलने लगता है जबकि वह लोग भी अपने आपसे शायद वैसे ही असंतुष्ट होते हैं, 

आपने यह भी देखा होगा कि शरीफ लोग अक्सर या सोचते हुए अपना सिर खुजलाया करते है कि वह व्यक्ति मुझसे क्यों जलता है मैंने तो उसका कुछ नहीं बिगड़ा बिगाड़ा क्यों अमुक व्यक्ति इस कदर मेरी चिंता मे लगा रहता है सच तो यह है कि मैंने सबसे अधिक भलाई उसी की की है

सोचते हैं मैं तो पाक साफ हूं मुझ में किसी व्यक्ति के लिए दुर्भावना नहीं है बल्कि अपने दुश्मनों की भी मैं भलाई ही सोचा करता हूं फिर यह लोग मेरे पीछे क्यों पड़े हुए हैं मुझ में कौन सा वह ऐब है जिसे दूर करके मैं उन दोस्तों को चुप कर सकता हूं  ईश्वर चंद्र विद्यासागर जब इस तजुर्बे से होकर गुजरे तब उन्होंने एक सूत्र कहा तुम्हारी निंदा वही करेगा जिसकी तुमने भलाई की है।और और जब इस पूछ से होकर निकला अब उसने जोरों से ठहाका  लगाया और कहा यह तो बाजार की मक्खियों है,

जो अकारण हमारे चारों ओर विनविनाया करती है यह सामने प्रशंसा और पीछे पीछे निंदा किया करती है हम इनके दिमाग पर बैठे हुए हैं यह मक्खियां हमें भूल नहीं सकती और यह हमारे बारे में बहुत सोचा करती है इसलिए यह हम से डरती है और हम पर शंका भी करती है ।

 यह मक्खियां हमें सजाा दे देती हमारे गुणों के लिए एक ऐब को तो ये माफ कर देगी , क्योंकि बड़ों के ऐब को तो  माफ कर देगी  जिससे उनका स्वाद लेने को यह मक्खयां तरस रही है जिनका चरित्र उन्नत है जिनका हृदय निर्मल और विशाल है वे कहते हैं इन विचारों की बात से क्या चढ़ना यह तो खुद ही छोटे हैं।

मगर जिनका दिल छोटा और संकीर्ण है वह मानते हैं कि जितना भी बड़ा हस्तियां है उनकी निंदा ही  ठीक है और जब हम इसके प्रति उदारता और भलमनसाहत का बर्ताव करते हैं तब भी वह यही समझते हैं कि हम उनसे गिरना कर रहे हैं और हम चाहे उनका जितना उपकार करें बदले में हमें अपकार ही मिलेगा।।

नित्से  ने कहा था आदमी में जो गुण महान समझे जाते हैं उन्हीं के चलते लोग उससे जलते भी हैं । तो इसी आलू लोगों से बचने का क्या उपाय है नित्य का कहना है की बाजार की मक्खियां को छोड़कर ऐकांत की ओर भाग गए जो कुछ भी अमर और महान है उसकी रचना और निर्माण बाजार तथा सूरस से दूर रहकर किया जाता है जो लोग नए मूल्यों का निर्माण करने वाले हैं वह बाजारों में नहीं बसते हुए शोहरत के पास भी नहीं रहते जहां बाजार की मक्खियां नहीं विनती है वह जगह एकांत है । 

 ईश्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है जो व्यक्ति इश्यालू स्वभाव का है उसे फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए उसे यह भी पता लगना चाहिए कि जिस अभाव के कारण हुआ इश्यालू बन गया है उसकी पूर्ति का रचनात्मक तरीका क्या है जिस दिन उसके भीतर यह जिज्ञासा जागेगी उसी दिन से इश्या   करना कम कर देगी। 

                              रामधारी सिंह दिनकर 

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