आइये आज हमलोग मित्रता के महत्वा को समझते है इस पोस्ट के माध्यम से , जिसमें मित्रता से जुढ़ी सभी तरह के नियम को इसमें लोखने का कोसिस किये है तथा मित्रता कैसे लोगो से करनी चाहिए इससे हमे जीवन पर क्या पढ़ता है इस सभी के बारे मे पूरी तरह बताया गया है /तो चलिए शुरु करते है 



मित्रता पर निबंध 


मित्रता पर निबंध


जब कोई युवा पुरुष अपने घर से बाहर निकल कर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाता हैं, तब पहली कठिनता उसे मित्र चुनने में पड़ती है यदि उसकी स्थिति बिल्कुल एकांत और निराली नहीं रहती तो उसकी जान पहचान के लोग धड़ाधड़ बढ़ते जाते हैं और थोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से उनका हेल मेल हो जाता है यही हेल मेल बढ़ते बढ़ते मित्रता के रूप मैं परिणत हो जाता है

मित्रों के चुनाव की उपयुक्त्ता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है हम लोग ऐसे समय मैं समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरंभ करते हैं जबकि हमारा चित्र कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने के योग्य रहता है हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं जिसे जो जिस रूप में चाहे उस रूप में ढाले चाहे राक्षस बनाएं चाहे देवता।


ऐसे लोगों के साथ करना हमारे लिए बुरा है जो हम से अधिक दृढ़ संकल्प के हैं क्योंकि हमें उनकी हर बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है पर ऐसे लोगों के साथ करना और भी बुरा है जो हमारे ही बात को ऊपर रखते हैं क्योंकि ऐसी दशा में ना तो हमारे ऊपर कोई नियंत्रण रहता है और ना हमारे कोई सहारा रहता है दोनों अवस्थाओं में जिस बात का भय रहता है उसका पता युवकों को प्राय: बहुत कम रहता है

 यदि विवेक से काम किया जाए तो या भय नहीं रहता पर युवा पुरुष प्राय: विवेक से कम काम लेते हैं कैसे आश्चर्य की बात है लोग एक घोड़ा लेते हैं और उसके सौ गुण दोष को परख कर लेते हैं पर किसी को मित्र बनाने में उसके पूर्व आचरण और स्वभाव आदि का कुछ भी विचार और अनुसंधान नहीं करते उनमें सब बातों अच्छी ही अच्छी मान कर अपना पूरा विश्वास जमा देते हैं हंसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, थोड़ी चतुराई या साहस ये दो चार बातें किसी में देखकर लोग चटपट उसे अपना बना लेते हैं 

हम लोग यह नहीं सोचते की मैत्री का आदर्श उद्देश्य क्या है क्या जीवन के व्यवहार में उसका कुछ मूल्य भी है यह बात हमें नहीं सुझती की यह ऐसा साधन है जिससे आत्म शिक्षा का कार्य बहुत सुगम हो जाता है 

एक प्राचीन विद्वान का वचन है "विश्वासपत्र मित्र से बड़े भारी रक्षा रहती हूं जिससे ऐसी मित्र मिल जाए उसे समझना चाहिए की खजाना मिल गया ।" विश्वास मित्र जीवन का एक औषध है हमें अपने मित्र से यह आशा रखनी चाहिए 

कि वे उत्तम संकल्पों से हमें दृढ़ करेंगे दोषों और त्रुटियों से हमें बचाएंगे हमारे सत्य पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे तब वे हमें सचेत करेंगे जब हम हितोत्साहित होंगे तब हमें उत्साहित करेंगे सारांश यह हैैं कि हमें उत्तम ता  जीवन निर्वाह करके करने में हर तरह से सेहता देंगे चाहता सत्ता देंगे। 

सच्ची मित्रता में उत्तम वैध किसी निपुणता और परख होती है अच्छी से अच्छी माता का धायरी धैर्य और कोमलता होती है ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न व्यक्ति को करना चाहिए।  


छात्र व्यवस्था में मित्रता की धुन सवार होती है मित्रता हृदय से उम्र पड़ती है पीछे के जो स्नेह बंधन होते हैं उसमें ना तो उतनी उमंग रहती है और ना उतनी खिन्नता । 

 बाल मैत्री मे जो मग्न करने वाला आनंद होता है जो हृदय को बेचने वाली एशिया और खिन्नता होती है वह और कहां? कैसी मधुरता और कैसी अनुरक्ति होती है कैसा अपार विश्वास होता है हृदय से कैसे उद्गार निकलते हैं वर्तमान कैसा आनंदमई दिखाई पड़ता है और भविष्य के संबंध में कैसी लुभाने वाली कल्पनाएं मन में रहती है कितनी जल्दी बातें लगती है और कितनी जल्दी मानना होता  है।


सहपाठी की मित्रता इस युक्ति में हिंदी के कितने भारी उथल-पुथल का भाव भरा हुआ है किंतु जिस प्रकार युवा पुरुष की मित्रता स्कूल के बालक की मित्रता शांत और गंभीर होती है 

उसी प्रकार हमारी युवावस्था के मित्र बाल्यावस्था के मित्र से कई बातों में भिन्न होते हैं मैं समझता हूं कि मित्र चाहते हुए बहुत से लोग मित्र के आदर्श की कल्पना मन में करते हैं पर इस पर कॉल कल्पित आदर्श से तो हमारा काम जीवन की झंझट में चलता ही नहीं सुंदर प्रतिभा मनभावन ईचाल और स्वच्छ प्रकृति यही दो चार बातें देखकर मित्रता की जाती है । पर जीवन संग्राम में साथ देने वालेे मित्रोंं से कुछ अधिक बातें चाहिए मित्र केवल उसे नहींं कहते जििसके गुणों की तो हम प्रशंसा करें पर जिससे हम सनेह ना करें जिससे अपनेेेे 


छोटे छोटे काम ही हम निकलते जाय पर भीतर ही भीतर गिरना करते जाए मित्र पथ प्रदर्शक के समान होना चाहिए जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें ।


मित्र भाई के समान होना चाहिए जिसे हम अपना प्रीति पात्र बना सकें हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए ऐसी सहानुभूति जिससे एक के हानि लाभ को दूसरा अपना हानि लाभ समझे मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं कि दो मित्र एक ही प्रकार का लाभ ले करते हो या एक ही रुचि के हो प्रकृति और आचरण की समानता भी अवश्य किया वांछनीय नहीं है

 दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर फिरती और मित्रता रही है राम धीर और शांत प्रकृति के थे लक्ष्मण उग्र और उद्धत स्वभाव के थे। पर दोनों भाई में अत्यंत स्नेह था उन दोनों की मित्रता खूब ने भी यह कोई बात नहीं है

 कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों में मित्रता हो सकती है समाज में विभिन्नता देखकर लोग एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं जो बोल हमें नहीं है हम चाहते हैं कि ऐसा मित्र मिले जिसमें वह भूल हो चिंता शील मनुष्य प्रफुल्लित चित्र का साथ ढूंढता है

 निर्बल बली का धीर उत्साही का। उच्च आक्षांशा वाला चंद्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए चाणक्य का मुंह ताकता था नीति विरासत अकबर मन बनाने के लिए बीरबल की ओर देखता था । 



मित्र का कर्तव्य किस प्रकार बताया गया है।


उच्च और महान कार्यों में इस प्रकार सहायता देना मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी अपनी सामर्थ्य से बाहर काम कर जाओ यह कर्तव्य उसी से पूरा होगा जो वृद्ध चिन्ह और सत्य संकल्प का है इससे हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिससे हमें अधिक आत्म बल मिले 

हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का  पल्ला पकड़ा था मित्र हो तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हिंदी के मृदुल और पुरुषार्थी हो शिष्ट और सत्यनिष्ठा जिससे हम अपने को उसके भरोसे पर छोड़ सके और यह विश्वास कर सके कि उनसे किसी प्रकार का धोखा ना हो।


जो बात ऊपर मित्रों के संबंध में कही गई है वही जान पहचान ने बालाओं के संबंध में भी ठीक है जान पहचान के लोग ऐसे ही हो जिसमें हम कुछ लाभ उठा सकते हैं 

जो हमारे जीवन को उत्तम और आनंद में बनाने में सहायता दे सकता है यद्यपि उतनी नहीं जितनी गहरे मित्र दे सकता है मनुष्य का जीवन थोड़ा है उसमें खोने के लिए समय नहीं है 

यदि क ख ग हमारे लिए कुछ नहीं कर सकते, ना कोई बुद्धिमानी या विनोद की बातचीत कर सकती है ना कोई अच्छी बात बता सकता है ना सहानुभूति द्वारा हमें ढाढस से बना सकते हैं ना हमारे आनंद में निम्न सम्मिलित हो सकते हैं ना हमें कर्तव्य का ध्यान दिला सकते हैं तो ईश्वर हमें उनसे दूर ही रखें हमें अपने चारों और जड़ मूर्तियां जानी है आजकल जान पहचान बड़ा ना कोई बड़ी बात नहीं है।

कोई भी युवा पुरुष ऐसे अनेक युवा पुरुषों को पा सकता है जो उसके साथ थिएटर देखने जाएंगे नाच गान में जाएंगे सैर सपाटा में जाएंगे भोजन का निमंत्रण स्वीकार करेंगे यदि आज से जान पहचान के लोगों से कुछ हानि ना होगी तो लाभ भी ना होगी यदि हानि होगी तो बड़ी भारी हानि होगी सोचो तो 

तुम्हारा जीवन कितना नष्ट होगा यदि यह जान पहचान के लोग उन मनचले युवकों में से निकले जो अमीरों की बुराई और मूर्खता ओं की नकल किया करते हैं दिन रात बनाओ सिंगार में रहा करते हैं

 महिलाओं में ओह ओह ओह वाह वाह क्या करते हैं गलियों में थकाहा मारते हैं और सिगरेट का धुआं उड़ाते हैं ऐसे नवयुग को से बढ़कर शून्य ,निसार और सोचनीय जीवन और किसका है

वे अच्छी बातों के सच्चे आनंद से कोसों दूर है उनके लिए ना तो संसार में सुंदर मनोहर उक्ति वाले कभी हुए और ना संसार में सुंदर आचरण वाले आत्मा। उनके लिए ना तो बड़े वीर अद्भुत कर्म कर गए और ना बड़े बड़े ग्रंथ कार ऐसे विचार में छोड़ गए 

जिससे मनुष्य जाति के हृदय में सात्विकता की उमंग उठती है उनके लिए फूल पत्तियों में कोई संदली नहीं झड़ने के कल कल में मधुर संगीत नहीं आनंद सागर तरंगों में गंभीर समस्या का आभास नहीं उनके भाग्य में सच्चे प्रयत्न और पुरुषार्थ का आनंद नहीं उनके भाग्य में सच्ची प्रीति का सुख और कोमल हृदय की शांति नहीं जिनकी आत्मा अपने इंद्रियों विषयों में ही लिप्त है जिनका हृदय निशा संयम और उचित विचारों से कुलीशित है ऐसे प्राणियों को अंधकार में प्रतीत होते देख कौन ऐसा होगा जो तरसना खाएगा हमें ऐसे प्राणियों का साथ ना करना चाहिए ।


मकदूनिया का बादशाह डेमोत्रियस कभी-कभी राज्य के सब काम छोड़कर अपने हिम्मेल के 10 पांच साथियों को लेकर विषय वासना में लिप्त रहता था इसी बीच उसका पिता उससे मिलने के लिए गया और उसने एक हंसमुख जबान को कोठरी से बाहर निकालते देखा जब पिता कोटरी के भीतर पहुंचा तब ग्रोमेट रियस ने कहा ज्वार ने मुझे अभी मुझे छोड़ा है  पिता ने कहा हां ठीक है वह दरवाजे पर मुझे मिला था।

कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है या केवल नीति और सद्बुद्धि का ही विनाश नहीं करता बल्कि बुद्धि का भी विनाश करता है किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरा होती है तो वह उसके पैरों में बंधी चक्की के समान होती है जो उसे दिन रात अवनति के गड्ढे में गिरा दी जाएगी और अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बहू के समान होगी जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।


इंग्लैंड के एक महान विद्वान को जुबा वस्था में राज दरबारियों में जगह नहीं मिलेगी इस पर जिंदगी भर अपने भाग्य को कोसता रहा है बहुत से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझते थे पर वह अच्छी तरह जानता था कि वहां वह बुरे लोगों की संगति में पढ़ सकता था 

वहां वह बुरे लोगों की संगति में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होती है बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है क्योंकि उतने ही बीच में ऐसी ऐसी बातें कहीं जाती है जो कानों में ना पढ़नी चाहिए चित् पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं 

जिससे उसकी पवित्रता का नाश हो जाता है बुराई अटल भाव धारण करके बढ़ती है बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती है इस बात को पर सभी लोग जानते हैं, 

भद्दे गीत  जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं उतनी जल्दी कोई गंभीर या अच्छी बात नहीं चढ़ती है एक बार एक मित्र ने कहा कि उससे लड़कपन में ही कहीं से बुरी कहावत सुनी थी जिसका ध्यान हुआ लाख चेष्टा करता है कि ना आए पर बार-बार आता है जिन भावनाओं को हम दूर रखना चाहते हैं 

जिन बातों को हम याद नहीं करना चाहते हैं वह बार-बार हृदय में उठती है और हमारे हृदय को भेधती भी है ।

 ऐसे लोगों को साथ ना बनाओ जो अश्लील अपवित्र और फूहड़ बातों से तुम्हें हंसाना चाहे, सावधान रहो ऐसा ना हो कि पहले पहल तुम इसे एक बहुत अच्छा सामान्य बात समझो और सोचो कि एक बार ऐसा हुआ फिर ऐसा ना होगा अथवा तुम्हारे चरित्र बल का ऐसा प्रभाव पड़ेगा

 कि ऐसी बातों बकने वाले आगे चलकर अपने आप सुधर जाएंगे नहीं ऐसा नहीं होगा जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है तब फिर वह नहीं देखता की वह कहां और कैसी जगह पर रख रहा है धीरे-धीरे उन बुरी बातों में व्यस्त होते होते तुम्हारी गृना कम हो जाएगी , 


पीछे तुम्हे उसमें चीड़ ना मालूम होगी क्योंकि तुम यह सोचो कि चिढ़ने की बात ही क्या है तुम्हारा विवेक कुंठित हो जाएगा और तुम्हें भले बुरे की पहचान ना रह जाएगी अंत में होते होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे अतः हृदय को उज्जल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगति के छूट से बचो यह एक पुरानी कहावत भी है । 

किसी महापुरुष ने कहा था की अगर आप काजल के कोठरी में जाओगे तो कुछ ना कुछ काजल आपको भी लग ही जाएगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा कि आपक कुछ ना कुछ काजल ना लगा हो।।



निष्कर्ष 


हमें उम्मीद है की मित्रता पर लेख आपको काफी पसंद आया होगा , मित्रता से जुढ़ी सारी जानकारी मिल गए होंगे आपको इस तरह के स्वभाव के इन्शान से दोस्ती करना चाहिए ताकि आपके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पढ़े क्योकि इसका जीवन मे सबसे अहम् भूमिका होता है / ज्यादा से ज्यादा लोगो तक इस पोस्ट को पहुचाये /





Post a Comment